Book Title: Yugveer Nibandhavali Part 2
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 836
________________ जैन कालोनी और मेरा विचार-पत्र :७ : आजकल जैन-जीवनका दिन-पर-दिन ह्रास होता जा रहा है, जैनत्व प्रायः देखनेको नही मिलता-कही-कही और कभी-कभी किसी अधेरे कोनेमे जुगनूके प्रकाशकी तरह उसकी कुछ झलकसी दीख पड़ती है । जैन-जीवन और अजैन-जीवनमे कोई स्पष्ट अन्तर नजर नहीं आता । जिन राग-द्वेप, काम-क्रोध, छल-कपट, झूठ-फरेव, धोखा-जालसाजी, चोरी-सीनाजोरी, अतितृष्णा, विलासता, नुमाइशीभाव और विषय तथा परिग्रहलोलुपता मादि दोषोसे अजैन पीडित है, उन्हीसे जैन भी सताये जा रहे हैं। धर्मके नामपर किये जानेवाले क्रियाकाण्डोमे कोई प्राण मालूम नही होता, अधिकाशमे जानापूरी, लोकदिखावा अथवा दम्भका ही सर्वत्र साम्राज्य जान पडता है। मूलमे विवेकके न रहनेसे धर्मकी सारी इमारत डावाडोल हो रही है। जब धार्मिक ही न रहे तब धर्म किसके आधारपर रह सकता है ? स्वामी समन्तभद्रने कहा भी है कि--'न धर्मोधामिविना' । अत. धर्मकी स्थिरता और उसके लोकहित-जैसे शुभ परिणामोके लिये सच्चे धार्मिकोकी उत्पत्ति और स्थितिकी ओर सविशेषरूपसे ध्यान दिया ही जाना चाहिये, इसमें किसीको भी विवादके लिये स्थान नहीं है। परन्तु आज दशा उलटी है----इस ओर प्राय किसोका भी ध्यान नही है। प्रत्युत इसके देशमे जैसी कुछ घटनाएँ घट रही हैं और उसका वातावरण जैसा कुछ क्षुब्ध और दूषित हो रहा है उससे धर्मके प्रति लोगोकी अश्रद्धा बढती जा रही है, कितने ही धार्मिक सस्कारोसे शून्य जन-मानस उसकी

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