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क्या मुनि कंदमूल खा सकते हैं ?
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ऊपरका प्रश्न हमारे बहुतने पाठोको एकदम खटकेगा ओर वे उत्तर में सहसा 'नही' शब्द रहना चाहेंगे। परन्तु शास्त्रीय चर्चाम इस प्रकारके जवानी उत्तरो कुछ भी मूल्य नही है । इसमें केवल वे ही उत्तर बाल हो सकते हैं जो शास्त्रप्रमाणको लिये हुए हो । अत उक्त प्रश्नका समाधान करने के लिये शास्त्रीय प्रमाणोके अनुसंधानको जरुरत है | मैं भी इस विपयमे आज कुछ यत्न करता है।
दिम्बर सम्प्रदायमे 'मूलाचार' नामका एक अतिशय प्राचीन और प्रसिद्ध ग्रंथ है, जिसे श्री वट्टकेर आचार्यने बनाया है । श्वेताम्बरो मे 'आचारागसूत्र' को जो पद प्राप्त है दिगम्बरो मे मूलाचारको उससे कम पद प्राप्त नही है । दिगम्बर सम्प्रदायमें यह एक वडा ही पूज्य और माननीय ग्रंथ समझा जाता है । श्रीवसुनन्दी सैद्धान्तिकने इसपर 'आचारवृत्ति' नामकी एक संस्कृतटीका भी लिखी है जो सर्वत्र प्रसिद्ध है और बड़े गौरव के साथ देखी जाती है । इस ग्रथको निम्नलिखित दो गाथाओ ओर उनकी संस्कृतटीकासे उक्त प्रश्नका अच्छा समाधान हो जाता है, इसीसे उन्हें नीचे उद्धृत किया जाता है
फलकंदमूलवीयं अपितु आमयं किंचि ।
णच्चा अणेसणीयं ण वि य पडिच्छेति ते धीरा ।। ९-५९ ॥ टीका - फलानि कदमूलानि वीजानि चाग्निपक्वानि न भवति यानि अन्यदपि आमक यत्किचिदनशनीयं ज्ञात्वा नैव प्रतीच्छन्ति नाभ्युपगच्छन्ति ते धीरा इति । यदशनीय तदाह
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