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अस्पृश्यता निवारक आन्दोलन : ३ :
अस्पृश्यता-निवारक और अछूतोके उद्धार-विषयक जो आन्दोलन महात्मा गाधीजीने आजकल उठा रक्खा हैं उसका हिन्दुओकी वाह्य-प्रवृत्ति और उनके धर्मशास्त्रोके साथ अनुकूलता या प्रतिकूलताका जैसा कुछ सम्बन्ध है, जैनियोकी बाह्य-प्रवृत्ति और उनके धर्म-ग्रन्योके साथ भी उसका प्रायः वैसा ही सम्बन्ध है-दोनो हो इस विषयमे प्राय समकक्ष है । और इसलिये यदि कुछ हिन्दू लोग, अपने चिर सस्कारोंके विरुद्ध होनेके कारण, इस आन्दोलनको अच्छा नही समझते, धर्म-घातक वतलाते हैं और उत्तेजित होकर इसका विरोध करते हैं, तो बाज जैनी भी यदि इसपर कुछ क्षुब्ध, कुपित तथा उत्तेजित हो जायें और विरोध करने लगें तो इसमें कुछ भी अस्वाभाविकता नही है
और न कोई आश्चर्यको ही बात है ।' परन्तु इस प्रकारके क्षोभ, कोप और विरोधका कुछ भी नतीजा नहीं होता और न ऐसी अवस्थामे कोई मनुष्य किसी विषयके 'यथार्थ निर्णयको पहुँच सकता है और तभी किसी विषयका यथार्थ निर्णय हो सकता है जब कि समस्त उत्तेजनामोसे अलिप्त रहकर उस विषयका बडी शाति और गभीरताके साथ निष्पक्ष भावसे एक जजके तौर पर, गहरा विचार किया जाय, उसके हर . पहलू पर नजर डाली जाय और इस तरह पर उसके असली तत्वको खोजकर निकाला जाय। यह ठीक है कि पुराने संस्कार किसी भी नई बातको ग्रहण करनेके लिये, चाहे वह कितनी ही अच्छी और