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युगवीर - निबन्धावली
उपयोगी क्यो न हो, हमेशा धक्का दिया करते हैं और उसे सहसा ग्रहण नही होने देते । परन्तु बुद्धिमान् और विचारक लोग वही होते हैं जो संस्कारो के परदेको फाडकर अथवा इस कृत्रिम आवरणको उठाकर 'नग्न सत्य' का दर्शन किया करते हैं । और इसलिये जो लोग महात्माजीके विचारोको सस्कारो के परदेमेसे देखना चाहते हैं, वे भूल करते हैं । उन्हें उस परदेको उठाकर देखनेका यत्न करना चाहिए, जिससे उनका वास्तविक रंग-रूप मालूम हो सके । और यह तभी हो सकता है जबकि उत्तेजनाओसे अलग रहकर, बडी शान्ति और निष्पक्षताके साथ, गहरे अध्ययन, गहरे, मनन, और न्यायप्रियताको अपने स्थान दिया जाय । महात्माजीके किसी एक शब्दको पकडकर उसपर झगडा करनेकी जरूरत नही है । ऐसा करना उनके शब्दोका दुरुपयोग करना होगा । उनके निर्णयकी तहको पहुँचने के लिये उनके विचार-समुच्चयको लक्ष्यमे रखनेकी बडी जरूरत है । आशा है, इन आवश्यक सूचनाओको ध्यानमे रखते हुए, हमारे पाठक इस आन्दोलनके सम्बन्धमे महात्माजीके विचारो और उनकी इच्छाओोको ठीक रूपसे समझने तथा आन्दोलनकी समीचीनता असमीचीनतापर गहरा विचार करनेकी कृपा करेंगे । और साथही निम्न बातोको भी ध्यानमे लेंगे :
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१ 'क्या पारमार्थिक दृष्टिसे धर्मका ऐसा विधान हो सकता है कि वह मनुष्योको मनुष्योसे घृणा करना और द्वेष रखना सिखलावे ? अपनेको ऊँचा और दूसरोको नीचा समझने के भाव - को अच्छा बतलावे ? अथवा मनुष्यो के साथ मनुष्योचित व्यवहारका निषेध करे ?
२ महावीर भगवानके समवसरणमे चारो ही वर्णके
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