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प्रकीर्णक निबन्ध
१. क्या मुनि कन्द-मूल खा सकते हैं ? २. क्या सभी कन्द-मूल अनन्तकाय होते हैं ? ३. अस्पृश्यता-निवारक आन्दोलन ४. देवगढ़के मन्दिर-मूर्तियोंकी दुर्दशा । ५. ऊँच-गोत्रका व्यवहार कहाँ ? ६. महत्वकी प्रश्नोत्तरी
जैनकालोनी और मेरा विचार-पत्र ८. समाजमें साहित्यिक सद्रुचिका अभाव .. समयसारका अध्ययन और प्रवचन १० भवाऽभिनन्दी मुनि और मुनि-निन्दा ११. न्यायोचित विचारोंका अभिनन्दन १२. श्रीरामजी भाई दोशी एडवोकेट-विषयक एक अनुभव