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अमर पंडित टोडरमल्लजी : ११ :
श्री पं० टोडरमल्लजी जैनसमाजके एक बहुत बड़े सच्चरित्र, अनुभवी, निस्वार्थसेवी एव सात्विक प्रकृतिके विद्वानोमे थे। बाल्यकालसे हो आपकी प्रतिभा चमक उठी थी और उसमे अध्यात्मरसके साथ धर्म, समाज तथा लोकसेवाकी कुछ ऐसी पुट लगी थी, जिसने शुरूसे हो आपके जीवनकी धाराको बदल दिया था। वे गृहस्थ होते हुए भी साधारण गृहस्थोके रगमे रंगे हुए नही थे, जलमे रहते हुए भी कमलकी तरह उससे भिन्न थे। उन्हे भोगोमे कोई आसक्ति नही थी। वे भोगोकी निस्सारता और उनके द्वारा होनेवालो आत्म-वचनाको अच्छी तरह समझे हुए थे। इसीसे भोगोके सुलभ होते हुए भी उनमे उनकी विशेष प्रवृत्ति नही थी और वे उनमे बहुत ही कम योग देते थे। उनका सारा समय दिनरात स्वाध्याय, विद्वद्गोष्ठी, ज्ञानचर्चा और एकनिष्ठासे साहित्य की आराधनामे ही व्यतीत होता था। यही वजह है कि वे इतनी थोडी-सी उम्रमे ही इतने महान अमर साहित्यका निर्माण करके सदाके लिये अमर हो गये हैं। ___ गोम्मटसार, लब्धिसारादि जैसे कई महान सिद्धान्तग्रन्थोकी जो सरल भाषामे विस्तृत टीकाएँ आपने लिखी हैं उनपरसे आपकी विद्वत्ता, अध्ययन-विशालता, विचार-तत्परता, प्रतिपादनकुशलता, निरहंकारता, स्वभावकी कोमलता और धर्म तथा परोपकारकी भावनाका अच्छा पता चलता है। और मोक्षमार्गप्रकाशक ग्रन्थ तो आपकी स्वतन्त्र रचनाके रूपमे एक बड़ा ही बेजोड़ ग्रन्थ है, जिससे आपके अनुभवकी गहनता, मर्मज्ञता तथा