________________
७४६
युगवीर-निवन्धावली
प्राप्त कर स्व-पर-हित साधनाके कार्यमे लगे हुए हैं और लोककल्याणकी भावनाओको अणुव्रत-आन्दोलनके द्वारा आगे वढा रहे हैं, यह सब देख-मुनकर बडी प्रसन्नता होती है। अत में आचार्य श्री के इस धवल समारोहके पुनीत अवसरपर उनके निराकुल दीर्घ जीवन और आत्मोन्नतिमे अग्रसर होनेकी शुभ भावना भाता हुआ उन्हे अपनी श्रद्धाजलि अर्पित करता हूँ।
१. आ० श्रीतुलसी अभिनन्दन-ग्रन्थ, १ मार्च १९६२, पृ० १९२ ।