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युगवीर-निबन्धावली
पढी, परन्तु पापके बापका तो नाम तक भी नही सुना, यह कौन-मी विद्या है ? इस प्रकार सोचते-सोचते • अन्तमे आपको यही कहना पडा कि, 'पापका वाप तो मैंने अभी तक नही पढा ।'
अपने पतिके इस उत्तरको सुन कर स्त्रीने किंचित् जोशमै आकर कहा कि "जव तुमने पापका बाप ही नही पढा तो तुमने पढा ही क्या ? तुम्हारा सव विद्यामोमे निपुण होना और वेद-वेदागका पाठी होना विना इसके पढे सब निष्फल है। इसलिए सबसे पहले पापका बाप पढिये । तव ही आपका सब विद्यामोको प्राप्त करना शोभा दे सकता है। अन्यथा, केवल भार ही भार वहना है।"
अपनी स्त्रीके इन वाक्योको सुनकर पतिराम इतने लज्जित हए कि उनको रात काटनी भारी पड़ गई। आप रात भर करवटें बदलते हुए चिन्तामे मग्न रहे और अपने हृदयमे आपने पूरे तौरसे यह ठान लो कि जब तक पापका बाप नही पढ़ लेंगे तब तक घरमे पैर नही रक्खेंगे, यही अभिप्राय आपने अपनी स्त्रीसे भी प्रगट कर दिया, और प्रात काल उठते ही नगरसे निकल गये।
स्त्रीके वचनोकी पडितजी पर कुछ ऐसी फटकारसी पड़ी कि, जब अपने नगरसे निकल कर दो-चार ग्रामोमे पूछने पर भी आपको कोई पापका बाप नहीं बता सका तो आप पागल-से हुए गलीमे यह कहते फिरने लगे कि, "कोई पापका बाप पढा दो । कोई पापका बाप बता दो।" इस प्रकार कहते और घूमते हुए पडितजी एक बडेसे नगरमे पहुंचे, जहां पर एक बडी चतुर वेश्या रहती थी। जिस समय पडितजी अपनी वाणी ( "कोई पापका बाप पढा दो-") बोलते हुए उस वेश्याके मकानके