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पापका बाप
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नीचेसे गुजरे तो वह वेश्या उनके हालको ताड गई-अर्थात् समझ गई, और उसने तुरन्त ही अपने एक आदमीके हाथ उनको ऊपर बुलवा लिया।
जब पडितजी ऊपर वेश्याके मकानपर पहुँचे तो वेश्याने उनको बहुत आदर-सत्कारसे विठाया और बैठने के लिये उच्चासन दिया। पडितजीके बैठ जानेपर वेश्याने उनका सब हाल पूछा
और उनकी हालतपर सहानुभूति और हमदर्दी प्रकट की। फिर वह वेश्या पडितजीको इधर-उधरकी बातोमे भुलाकर उनकी प्रशसा करने लगी और कहने लगी कि, मुझ "मदभागिनी के ऐसे भाग्य कहाँ जो आप जैसे विद्वान, सज्जन और धर्मात्मा अतिथि मेरे घर पधारें, मेरा घर आपके चरणकमलोसे पवित्र हो गया, मेरी इच्छा है कि आज आप यही पर भोजन कर इस दासीका जन्म सफल करें, आशा है कि आप मेरी इस प्रार्थना को अस्वीकार न करेगे ।" वेश्याकी इस प्रार्थनाको सुन कर पडितजी कुछ चौंक कर कहने लगे कि, हैं । यह क्या कही । हम ब्राह्मण तुम्हारे घरका भोजन कैसे कर सकते हैं ? इस पर वेश्याने नम्रतासे कहा कि "महाराजका जो कुछ विचार है वह ठीक है परन्तु मैं बाजारसे हिन्दूके हाथ भोजनकी सब सामग्री मँगाये देती हूँ, आप स्वय यही पर रसोई तैयार कर लेवें, इसमें कोई हर्ज है और यह लो! ( सौ रुपयेकी ढेरी लगा कर ) अपनी दक्षिणा ।"
पडितजीने ज्यूँही नकद नारायणके दर्शन किये कि उनकी आँखे खुल गई और वे सीचने लगे कि, वेश्याके यहांसे सूखा अन्नादिकका भोजन लेने व बाजारसे इसके द्वारा मगाई सामग्रीसे भोजन बना कर खानेमे तो कोई दोप नही है, और दूसरे यह दक्षिणा भी माकूल देती है; इसलिये इसकी प्रार्थना जरूर