________________
७४४
युगबीर-निवन्धावली सुनते, नोट कराते, पहले किये हुये किसी नोटकी याद दिलाते, एकान्तमे बैठ कर लेख लिखाते समय विराम-चिह्नो तकको बोलते जाते और चर्चा वार्ताम कितना अधिक रस लेते, इस सबका मुझे अच्छा अनुभव है। अनेक प्रसगोकी याद भी ताजा है और इसीलिये मैं कह सकता हूँ कि पडितजीका जीवन ज्ञानकी आराधनामे बडा ही व्यग्र तथा अग्रसर रहा है और यही वजह है कि वे इतनी अधिक योग्यता एव शक्तिके विकासको प्राप्त कर सके हैं। इस दृष्टिसे पडितजीका जीवन बहुतोके लिये शिक्षाप्रद ही नही, किन्तु अनुकरणीय है।
ऐसे महान् विद्वानके सम्मानमे जो यह आयोजन किया जा रहा है यह उनके योग्य ही है और उस समाजके भी योग्य ही है जिसने ऐसे आदर्श विद्वानकी सेवाएं प्राप्त की है। नि सन्देह बम्बईके जैन युवक सघने पडितजीके सम्मान-समारम्भका यह आयोजन कर एक आदर्श कार्य किया है और इसके लिये वह सविशेष रूपसे धन्यवादका पात्र है।।
मेरी हार्दिक भावना है कि प० सुखलालजी स्वस्थताके साथ दीर्घजीवी हो, उनकी अन्तर्दृष्टि सत्यनिष्ठाके साथ अधिक विकसित हो और वे अपने आराधित ज्ञानके द्वारा दूसरोको समुचित लाभ पहुंचाने में समर्थ हो सकें।