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युगवीर-निवन्धावली घेरा-कण्ठी अयवा मोतीझारेका ज्वर हो आया। इधर दादाजीसा पत्र माया कि वे वहन गुणमाला नया वि० ज्यवन्तीको प० चन्दाबाईक पान आरा छोडकर वापिस नानांता लागई हैं और पत्र में तुम्हें जल्दी ही लेकर आनेको प्रेरणा की गई थी। मैने भी मोत्रा कि इस बीमारी में तम्हाने अच्छी मेवा और चिकित्मा दादोजी के पास ही हो सकेगी, और उमलिये मैं १७ जनगो तुम्हें लेकर नानांना मागया। दो-चार दिन बीमागेको कुछ शाति पटो और तुम्हारे अच्छा होनेको आशा बंधी नि फिर एकदम बीमागे लोट गई। उपायान्तर न देखकर २६ जूनको नम्हे सहारनपुर जैन नफाखाने में लाया गया, जहां २७ की गतको तुमने दम तोडना शुरू किया और २८ की सुबह होते होते तुम्हाग प्राण-पखेरू एकदम उड गया !! किसीकी कुछ भी न चली ।। उसी वक्त तुम्हारे मृत शरीरको अन्तिम संस्कारके लिये शिक्रममें रखकर सरसावा लाया गया-सायम दादोर्जी
और एक दूसरे सज्जन भी थे । खबर पाते ही जनता जुड़ गई। वुटुम्ब तथा नगरके कितने ही सज्जनोकी यह राय थी कि तुम्हारा दाह-सस्कार न करके पुरानी प्रथाके अनुसार तुम्हारे मृतदेहको जोडके पास गाड दिया जाय और उसके आस-पास कुछ पानी फेर दिया जाय, परन्तु मेरो आत्माको यह किसी तरह भी रुचिकर तथा उचित प्रतीत नहीं हुआ, और इसलिये अन्तको तुम्हारा दाह-सस्कार ही किया गया, जो सरसावामै तुम्हारे जैसे छोटी उम्रके वच्चोका पहला ही दाह-सस्कार था।
इस तरह लगभग ढाई वर्षकी अवस्थामे ही तुम्हारः वियोग होजानेसे मेरे चित्तको बहुत बडा आघात पहुँचा था, क्योकि मैंने तम्हारे ऊपर बहुतसी आशाएँ बाँध रक्खी थी और अनेक