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युगवीर निबन्धावली
दिमागको तो देखो जो इतनी बडी धोतोको भी 'कत्तर बतलाती है ।"
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एक दिन सुबहके वक्त तुम मेरे कमरे के सामने की वगटीमे दौड लगा रही थी और तुम्हारे शरीरकी छाया पोछेकी दीवारपर पड रही थी । पास में खडी हुई भाई हीगनलालजीकी वडी लडकियाँ कह रही थी 'देख, विद्या । तेरे पीछे भाई आरहा है।' पहले तो तुमने उनकी इस वातको अनसुनीसी कर दिया, जब वे बराबर कहती रही तब तुमने एकदम गम्भीर होकर उपटते हुए स्वरमें कहा "नही, यह तो छांवला है ।" तुम्हारे इस 'छांवला' शब्दको सुनकर सबको हंसी आगई । क्योकि छाया, छाँवली अथवा पछाईकी जगह 'छांवला' शब्द पहले कभी सुनने मे नही आया था। आमतौरपर बच्चे बतलाने वालोके अनुरूप अपनी छायाको भाई समझकर अपने पीछे भाईका आना कहने लगते हैं । यही बात भाईकी लडकियां तुम्हारे मुखसे कहलाना चाहती थी जिससे तुम्हारी निर्दोष वोली कुछ फल जाय, परन्तु तुम्हारे विवेकने उसे स्वीकार नही किया और 'छांवला' शब्दकी नई सृष्टि करके सबको चकित कर दिया । खरबूजा आदि कुछ
खाते खाते तुमने
एक रोज में अपने साथ तुम्हे लिची, कुछ फल खिला रहा था, तय्यार फलोको एग्दम अपना हाथ सिकोड लिया और मेरे इस पूछने पर कि 'और क्यो नही खाती ?' तुमने साफ कह दिया कि "मेरे पेट मे तो लिचीकी भूख हैं ।" तुम्हारी इस स्पष्टवादितापर मुझे वडी प्रसन्नता हुई और मैने लिचीका भरा हुआ वोहिया तुम्हारे सामने रखकर कहा कि इसमेसे जितनी इच्छा हो उतनी लिची खा लो । तुमने फिर दो-चार लिची और खाकर ही अपनी तृप्ति