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युगवीर-निवन्धावली किसी धायको दिला दिया जायगा, इससे खर्च भी कम पडेगा
और तुम बहुत-सी चिन्ताओसे मुक्त रहोगे। घरपर धाय रखनेसे तो वडा खर्च उठाना पड़ेगा और चिन्तामोसे भी वरावर घिरे रहोगे।' मैने कहा-'पहाडोपर धाय द्वारा बच्चोकी पालना । पूर्ण तत्परताके साथ नहीं होती। घायको अपने घर तथा खेतक्यारके काम भी करने होते हैं, वह बच्चेको यो ही छोडकर अथवा टोकरे या मूढे आदिके नीचे बन्द करके उनमे लगती है और बच्चा रोता-विलखता पड़ा रहता है। धाय अपने घरपर जैसा-तैसा भोजन करती है, अपने बच्चेको भी पालती है और इसलिये दूसरेके बच्चेको समयपर यथेष्ट भोजन भी नहीं मिल पाता और उसे व्यर्थ के अनेक कष्ट उठाने पड़ते हैं। इसके सिवाय, यह भी सुना जाता है कि पहाडोपर बच्चे वदले जाते हैं और लोभके वश दूसरोको वेचकर मृत भी घोषित किये जाते हैं। परन्तु इस सबसे अधिक बड़ी समस्या जो मेरे सामने है वह सस्कारोकी है और सब कुछ ठीक होते हुए भी वहाँके अन्यथा संस्कारोको कौन रोक सकेगा? मैं नहीं चाहता कि मेरी लडकी मेरे दोषसे अन्यथा सस्कारोमे रहकर उन्हे ग्रहण करे।' और इसलिये अन्नको यही निश्चित हुआ कि घरपर धाय रखकर ही तुम्हारा पालन-पोपण कराया जाय । तदनुसार ही धायके लिये तार-पत्रादिक दौडाये गये।
भाई रामप्रसादजी आदिके प्रयत्नसे एककी जगह दो धाय आगराकी तरफसे आ गईं, जिनमेसे रामकौर धायको तुम्हारे लिये नियुक्त किया गया, जो प्रौढावस्थाकी होनेके साथ-साथ श्यामवर्ण भी थी उस समय मैंने कही यह पढ रक्खा था कि श्यामा गायके दूधकी तरह बच्चोके लिये श्यामवर्णा धायका दूध