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युगवीर- निबन्धावली
सकती कि वह सत्यप्रिय योग्य विद्वानोकी कोई ऐसी समर्थ समिति खड़ी कर सकेगी जिसका काम ही अनुवादोकी जाँच हो और जिसके द्वारा पास ( पारित ) किये हुए अनुवाद ही प्राय विश्वसनीय समझे जॉय, परन्तु समाजके सुयोग्य तथा अनुभवी विद्वानोसे यह आशा जरूर की जा सकती है कि वे 'समालोचक' बनें । सत्य-समालोचकोकी कृपासे ही दोषोका सुधार और त्रुटियोका बहुत कुछ परिहार होता है, लेखकोकी निरकुशता जाती रहती है, बुराइयोकी जड़ कट जाती है और सर्वत्र उन्नतिका पवन बहने लगता है। कितने ही देशो तथा जातियोके साहित्यका सुधार और उद्धार इन्ही समालोचकोकी कृपाका एक मात्र फल है । आजकल समालोचनाका अधिकतर भार पत्रसम्पादकोपर पडा हुआ है, परन्तु उन बेचारोको इतनी फुर्सत कहाँ है कि वे अपने पास आए हुए सभी ग्रथोको पूरा पढ़ें, उनकी अच्छी जॉच करे और फिर ठीक-ठीक समालोचना करें ? और इसलिये वे बहुधा प्राप्त ग्रन्थोका कुछ थोडा-सा परिचय दे - दिलाकर उनकी प्रशसा आदिमे साधारण तौर पर कुछ लिखलिखाकर अथवा लेखक-प्रकाशकको धन्यवाद भेट करके ही छुट्टी पा लेते और अपना पिण्ड छुडा लेते हैं । ऐसी चलती हुई समालोचनाओसे समालोचनाके अर्थकी सिद्धि नही हो सकती । इसलिये समाजके सत्यनिष्ठ और हितचिन्तक विद्वानोको इस ओर खास तौरसे ध्यान देना चाहिए और एक जजके तौरपर अनुवाद- जाँच के कार्यको भी अपने हाथोमे लेना चाहिये । उन्हे, कमसे कम, जिस किसी भी अनुवाद ग्रथमे कोई त्रुटि मालूम पडे - मूलसे कोई विरोध नजर आए - उसे विना किसी संकोचके युक्तिपूर्वक सयत भाषामे समाजके सामने रखना चाहिये और ऐसा करना अपना कर्तव्य समझना चाहिये । समाजके पत्र