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डा० भायाणी एम० ए० को भारी भूल ::
डा० हरिवल्लभ चुन्नीलाल भायाणी एम० ए०, पी-एच० डी० ने कविराज स्वयम्भूदेवके 'पउमचरिउ' नामक प्रमुख अपभ्रश ग्रन्थका सम्पादन किया है, जिसके दो भाग सिंघी जैनगन्यमालामे प्रकाशित हो चुके हैं। प्रथम भाग ( विद्याधर काण्ड ) के साथ आपकी १२० पृष्ठकी अग्रेजी प्रस्तावना लगी हुई है जो अच्छे परिश्रमसे लिखी गई तथा महत्वकी जान पडती है और उस पर बम्बई युनिवसिटीसे आपको डाक्टरेट (पी-एच० डी० ) की उपाधि भी प्राप्त हुई है। यह प्रस्तावना अभी पूरी तौरसे अपने देखने तथा परिचयमे नही आयी । हालमे कलकत्ताके श्रीमान् बाबू छोटेलालजी जैनने प्रस्तावनाका कुछ अश अवलोकन कर उसके एक वाक्यकी ओर अपना ध्यान आकर्षित किया, जो इस प्रकार है - ‘Marudevi saw a series of fourteen dreams'
यह वाक्य ग्रन्थकी प्रथम सन्धिके परिचयसे सम्बन्ध रखता है। इसमे बतलाया गया है कि 'मरुदेवीने चौदह स्वप्न देखे' । चौदह स्वप्नोकी मान्यता श्वेताम्बर सम्प्रदायकी है, जबकि दिगम्बर सम्प्रदाय सोलह स्वप्नोका देखा जाना मानता है और ग्रन्यकार स्वयम्भूदेव दिगम्बराम्नायके विद्वान है। अत बाबू श्री छोटेलालजीको उक्त परिचयवाक्य खटका और उन्होने यह जानने की इच्छा व्यक्त की कि 'क्या मूल ग्रन्थमे ऋपभदेवकी माता मरुदेवीके चौदह स्वप्नोके देखनेका ही उल्लेख है ।' तदनुसार मूल ग्रन्थको देखा गया तो उसके १५ वे कडवक की