________________
डा० भायाणी एम० ए० की भारी भूल ६४९ प्रति भी भारी अन्याय है जिन्हे सत्यसे वचित रखकर गुमराह करनेकी चेष्टा की गई है। खेद है डा० साहबके गुरु आचार्य जिनविजयजीने भो, जो कि सिंघी जैनग्रन्थमालाके प्रधान सम्पादक हैं और जिनकी खास प्रेरणाको पाकर ही प्रस्तावनात्मक निबन्ध लिखा गया है, इस बहुत मोटी गलती पर कोई ध्यान नही दिया। इसीसे वह उनके अग्रेजी प्राक्कथन ( Foreword ) में प्रकट नही की गई। और न शुद्धिपत्रमे ही उसे अन्य अशुद्धियोके साथ दर्शाया गया है। ऐसी स्थितिमे इसे सस्कारोके वश होनेवाली भारी भूल समझी जाय या जानबूझ कर की गई गलती माना जाय ? मैं तो यही कहूँगा कि यह डा० साहबकी सस्कारोके वश होनेवाली भूल है। ऐसी भूलें कभी कभी भारी अनर्थ कर जाती हैं। अत भविष्यमे उन्हे ऐसी भूलोके प्रति बहुत सावधानी बर्तनी चाहिए और जितना भी शीघ्र हो सके इस भूलका प्रतिकार कर देना चाहिए । साथ ही ग्रन्थमालाके सचालकजीको ग्रन्थकी अप्रकाशित प्रतियोमे इसके सुधारकी अविलम्ब योजना करनी चाहिये। आशा है, ग्रन्थसम्पादक उक्त डा० साहब और सचालक आ० जिनविजयजी इस ओर शीघ्र ध्यान देनेकी कृपा करेंगे।
नोट :--प्रसन्नताका विषय है कि 'अनेकान्तम' इस लेखको पदकर डा० साहवने अपनी भूल स्वीकार की और उसके सशोधन का आश्वासन दिया है।
-
PART
T . THITI.
HA ...-
..
-
-
--
-
-
१ अनेकान्त वर्ष १३, कि० १, जुलाई १९५४