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युगवीर- निवन्धावली
चार्य प० महेन्द्रकुमारजी ओर प्रो० हीरालालजी एम० ए० के महत्वपूर्ण व्याख्यानोके अनन्तर सभापतिजीका जैनधर्म के अहिंसादि सिद्धान्तोपर अग्रेजीमे ओजस्वी भाषण हुआ । भाषणकी गति इतनी तेज थी कि वह स्पेशल ट्रेनकी गति को भी मात करती थी और इसी से रिपोर्टरोको यथेष्ट रिपोर्ट लेते नही बनता था, वे कलम थामकर बैठ गये थे । तत्पश्चात् डा० कालीदास का बगला भाषामे जैनधर्मकी प्राचीनता, महत्ता तथा शिल्पफलादि विषयक बडा ही रोचक व्याख्यान हुआ और वादको उसके साथ मे छायाचित्रोकी योजनाने उसे और भी अधिक मनोरजक बना दिया। सारी जनता एकाग्र थी और चित्रोको देखकर तथा भाषणको सुनकर गद्गद् हो रही थी । वावू लक्ष्मीचन्द्रजी साथ-साथ बगलाका हिन्दी अनुवाद भी सुनाते जाते थे । जैनधर्म के प्रचारका यह तरीका अच्छा प्रभावशाली जान पडा । इसके बाद वैद्यराज प० कन्हैयालालजी कानपुरके सभापतित्वमे जैन आयुर्वेद परिषद् हुई । सभापतिजीने अपना लम्बा मुद्रित भाषण सक्षेपमे पढ कर सुनाया। अधिक समय हो जाने से दूसरे भाषणको अवसर नही मिल सका ।
ता० ३ नवम्बरको सुबह जैनभवनमे जैनविज्ञान - परिषद्का अधिवेशन प्रो० हरिमोहन भट्टाचार्य के सभापतित्वमे हुआ । प० नेमिचन्द्रजी ज्योतिषाचार्यने अपना महत्वपूर्ण निबन्ध पढा और उसके द्वारा जैन- ज्योतिषकी महत्ताको अनेक प्रकारसे स्थापित किया । प्रो० हीरालालजी आदि और भी कुछ विद्वानोके भाषण मंत्रशास्त्रादि विषयो पर हुए । अन्तमे सभापतिजीका जैन-विज्ञानके अनेक अंगो पर जैन सिद्धान्तोकी प्रशंसामे मार्मिक भाषण हुआ ।
रात्रिको बेलगछियामे कला और पुरातत्व - परिषद्का अधि