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अभिनन्दनीय पं० नाथूरामजी प्रेमी : १० :
मुझे यह जानकर बडी प्रसन्नता है कि श्रीमान् पडित नाथूरामजी प्रेमीको अभिनन्दन-ग्रन्थ भेंट किया जा रहा है। प्रेमीजीने समाज और देशकी जो सेवाएँ की है, उनके लिये वे अवश्य ही अभिनन्दनके योग्य है। अभिनन्दनका यह कार्य बहुत पहले ही हो जाना चाहिए था, परन्तु जब भी समाज अपने सेवकोको पहचाने और उनकी कद्र करना जाने तभी अच्छा है। प्रेमीजी इस अभिनन्दनको पाकर कोई बडे नही हो जावेंगे-वे तो बड़े कार्य करनेके कारण स्वत. बडे है परन्तु समाज और हिन्दी-जगत उनकी सेवाओके ऋणसे कुछ उऋण होकर ऊँचा जरूर उठ जायगा। साथही अभिनन्दन-ग्रंथमे जिस साहित्यका सृजन और सकलन किया गया है उसके द्वारा वह अपने ही व्यक्तियोकी उत्तरोत्तर सेवा करने में भी प्रवृत्त होगा। इस तरह यह अभिनन्दन एक ओर प्रेमीजीका अभिनन्दन है तो दूसरी ओर समाज और हिन्दी-जगतकी सेवाका प्रबल साधन है और इसलिए इससे 'एक पथ दो काज' वाली कहावत बडे ही सुदर रूपमे चरितार्थ होती है। प्रेमीजीका वास्तविक अभिनन्दन तो उनकी सेवाओका अनुसरण है, उनकी निर्दोष कार्य-पद्धतिको अपनाना है, अथवा उन गुणोको अपनेमे स्थान देना है, जिनके कारण वे अभिनन्दनीय' बने हैं।
प्रेमीजीके साथ मेरा कोई चालीस वर्षका परिचय है। इस अर्सेमे उनके मेरे पास करीब सातसो पत्र आए हैं और लगभग इतने ही पत्र मेरे उनके पास गए हैं। ये सब पत्र प्राय. जैन