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युगवीर-निवन्धावली अपने साहित्य-शरीरमे वे आज भी जीवित विद्यमान है और जव तक उनका यह साहित्य रहेगा वे अमर रहेगे तथा लोकको प्रकाश देते रहेगे। ___ अपने इस पिछले चार वर्पके जीवनमे यद्यपि उनसे समाजकी कोई खास सेवा नही बन सकी। एक-दो बार लेखोके लिये जो उन्हे प्रेरणा की, तो उन्होने यही कहा कि 'काम ठियेपर बैठकर ही होता है, यहाँ मेरे पास कोई साधन नही है' फिर भी वे समाजके कामोमे कुछ न कुछ भाग बराबर लेते रहे हैं। एक बार देवबन्दसे वीरशासन-जयन्तीके उत्सवमे सरसावा पधारे थे। और पिछले कलकत्तामे होने वाले वीर-शासन--महोत्सवके लिये जब बा० पन्नालालजी अग्रवाल देहली मत्री वीरसेवामन्दिरने उन्हे लेखके लिये प्रेरणा की थी तो उन्होने एक लेख उनके पास भेजा था, जो संभवत. उनका अन्तिम लेख था, उनके विचारोका प्रतीक था और जिससे जाना जाता है कि समाजके प्रति उनकी लगन और शुभ भावना बरावर बनी रही है। मालूम नही वह लेख अब किसके पास है, उसको प्रकाशित करना चाहिये। ____ इसमे सन्देह नहीं कि वाबू सूरजभानजी समाजके ऊपर अपनी सेवाओ तथा उपकारोका एक बहुत वडा ऋण छोड गये हैं। और इस लिये उससे उऋण होनेके लिये समाजका कर्तव्य है कि वह उनका कोई अच्छा स्मारक खडा करे और उनके उस साहित्यका संरक्षण एव एकत्र प्रकाशन करे। जो समाजके उत्थान और उसको नवजीवन प्रदान करनेमे सहायक है।
१. अनेकान्त वर्ष ७, कि० ११-१२