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श्रीदादीजी आशा नही थी। आपने सब ओरसे अपनी चित्त-वृत्तिको हटा लिया था, धार्मिक पाठोको बडी रुचि तथा एकाग्रतासे सुनतो थी और उनमें जहाँ कही वन्दना या उच्च भावोंके प्रस्फुटनका प्रसग आता था तो आप हाथ जोडकर मस्तक पर रखती थी और इस तरह उनके प्रति अपनी श्रद्धा तथा भक्ति व्यक्त करती थी। इन सब बातोसे आपकी अन्तरात्मवृत्ति और चित्तशुद्धि स्पष्ट लक्षित होती थी। अन्तसमय तक आपको होश रहा तथा चित्तकी सावधानी बराबर बनी रही और इस तरह आपने समाधिपूर्वक देहका त्याग किया है, जो अवश्य ही आपके लिये सद्गतिका कारण होगा।
देह-त्यागके समय आपकी अवस्था ८६-८७ वर्षकी थी। आपके इस वियोगसे आपकी पुत्री गुणमाला और पोती जयवन्तीको जो कष्ट पहुँचा है उसे कौन कह सकता है ? मैं स्वय मातृवियोग-जैसे कष्टका अनुभव कर रहा हूँ। माताकी तरह आप सदा ही मेरे हितका ध्यान रखती, मुझे धैर्य बंधाती और सत्कार्योके करनेमे प्रेरणा प्रदान करती रही है। मेरी हार्दिक भावना है कि आपको परलोकमे यथेष्ट सुख-शान्तिकी प्राप्ति होवे।
अपने दानका सकल्प आप बहुत पहलेसे कर चुकी थी, जिसकी सख्या १००१) है और जिसका विभाजन विभिन्न मन्दिरो और सस्थाओमें कर दिया गया है ।
१. अनेकान्त वर्ष ७, किरण ९-१० ।