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युगवीर-निवन्धावली श्रावणकृष्ण-प्रतिपदाको सूर्योदयके समय ही वीरभगवानकी प्रथम देशना हुई थी और उनका धर्मतीर्थ प्रवर्तित हुआ था। अतः इस सूर्योदयके समय सबसे पहले महावीरसन्देशको सुननेकी जनताकी इच्छा हुई, तदनुसार “यही है महावीरसन्देश विपुलाचलपर दिया गया जो प्रमुख धर्म-उपदेश' इत्यादि रूपसे वह 'महावीर-सन्देश' सुनाया गया जिसमें महावीर जिनेन्द्रकी देशनाका सार सगृहीत है और जिसे जनताने आदर्श के साथ सुना तथा सुनकर हृदयंगम किया।
इसके बाद वीरप्रभुके मन्दिरमे पूजनादिक्षी योजना की गई। अभिपेकके बाद वीरसेवामन्दिरसे प्रकाशित वह 'जिनदर्शन स्तोत्र' पढा गया, जिसका प्रारंभ 'आज जन्म मम सफल हुआ प्रभु ! अक्षय-अतुलित-निधि-दातार' इन शब्दोसे होता है । इसे पढते समय पढने-सुननेवालोका हृदय भक्तिसे उमडा पडता था । वादको प० कैलाशचन्द्रजी आदिने ऐसी सुरीली आवाजमें मधुरध्वनि और भक्तिभावके साथ पूजा पढी कि सुननेवालोका हृदय पूजाकी ओर आकर्षित हो गया और वे कहने लगे कि पूजा पढी जाय तो इसी तरह पढी जाय जो हृदयमे वास्तविक आनन्दका सचार करती है। अन्तमे एक महत्वको सामूहिक प्रार्थना की गई जिसका प्रारभ "हमें है स्वामी उस बलकी दरकार' इन शब्दोसे होता है।
पूजाकी समाप्तिके अनन्तर सब लोग खुशी-खुशी उस स्थानपर गये जहां वीरभगवानका समवसरण लगा था, जो विपुलाचलपर समवसरणके योग्य सबसे विशाल क्षेत्र है और जहाँ वीरप्रभुकी प्रथम देशनाको उस दिन २५०० वर्ष हो जानेकी यादगारमे बा० छोटेलालजी जैन रईस कलकत्ताने एक कीर्ति-स्तभकी स्थापनाके