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युगवीर-निबन्धावली करनेके लिये चलना ही पड़ा। इसके बाद पहाडपर उपस्थित सारी जनताको बा० छोटेलालजी कलकत्ताकी ओरसे शुद्ध मिष्टान्नादिके रूपमे प्रीतिभोज दिया गया और वह बडे आनन्दके साथ सम्पन्न हुआ।
पर्वतपरसे उतरकर मन्दिरोके दर्शन और भोजनकर लेनेपर भी पर्वतपरके उस अपूर्व दृश्यको बार-बार स्मृति होती थी और हृदयमे आनन्दकी लहरें छा जाती थी। बा० छोटेलालजीने उस दिन ६००-७०० कगलोको भोजन कराया।
और फिर रात्रिको वीरशासन-जयन्तीका वार्षिक जल्सा हुआ, जिसमे सभापतिका आसन त्यागमूर्ति पंडिता चन्दाबाईजीको प्रदान किया गया। वा० छोटेलालजीके हृदयद्रावक स्वागतभाषण और पं० चन्दावाईजीके हृदय-स्पर्शी भाषणके अनन्तर अनेक विद्वानोके महत्वपूर्ण भाषण हुए जिनमे वीरभगवानको लोकसेवाओ और उनके शासनपर प्रकाश डाला गया तथा वीरशासन-जयन्ती-पर्वके महत्वकी घोषणा की गई। उसी समय एक प्रस्ताव पास किया गया जिसमे सार्घद्वयसहस्राद्वि-महोत्सवके अवसरपर साहित्य-प्रकाशन, कोतिस्तम्भ-स्थापन और साहित्यसम्मेलनादिके आयोजनपर जोर दिया गया। अगले दिन ८ जुलाईको सुबह ८ बजेके करीव जो जल्सा हुमा उसमे भी ७ प्रस्ताव पास किये गये।
इस उत्सवके आयोजन, आतिथ्य-सत्कार और खर्चका सब भार वाबू छोटेलालजी जैन रईस कलकत्ता, सभापति वीरसेवामन्दिरने उठाया है, इसके लिये आपको जितना भी धन्यवाद दिया जाय वह सब थोडा है।'
१. अनेकान्त वर्ष ६, कि० १२, जुलाई १९४४