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युगवीर-निवन्धावली इसलिये उसने खूटा तथा उससे बंधनेवाले पशु आदिको कल्पना करके मुझे १० अप्रैल सन् १९३० को एक लम्वा पत्र (न० ४ ) लिखा जो पढनेसे ही सम्बन्ध रखता है और जिससे मेरे शब्दोपर उसका क्षोभ स्पष्ट जाना जाता है। पत्रमे अपनी स्थितिको स्पष्ट करनेकी चेष्टा की गई है और साथही सुधारने के लिये अपना वह लेख सूचनाओके साथ वापिस माँगा गया है जो अनेकातमे छपने के लिये भेजा गया था।
इसके बाद २६ अप्रैलके कार्डमे लेखको पुनः वापिस भेजने की प्रेरणा करते हुए हेमचन्द्रने लिखा था "यव यदि आप उसे भेज दें तो पहलेसे १० गुना अच्छा लिखा जा सक्ता है। उक्त विषयकी बहुत-सी नई वातें मालूम हुई हैं। साथ ही अपनी पिछले पत्रपर मेरी नाराजगीकी कुछ कल्पना करके लिखा था-''आशा है कि आप नाराज न हुए होगे। बालक हूँ, क्षमादृष्टि बनाये रहना ।"
इन पक्तियोपरसे हेमका पिछले पत्रके सम्बन्ध में कुछ अनुताप और साथ ही नम्रताका भाव टपकता था, इसलिये ३० अप्रैलको पत्रका उत्तर देते और लेखको वापिस भेजते हुए मैने जो पत्र लिखा था उसमे उक्त पंक्तियोसे फलित होनेवाले अनुताप और नम्रताके भावका भी कुछ जिक्र कर दिया था। इतनेपर भी हेमके स्वाभिमानको फिरसे ठेस लग गई और उसने ५मई सन् १९३० को जो उत्तर पत्र (न० ६) लिखा उसमे यहां तक लिख डाला-"जो भी कुछ मैने लिखा था उसके लिये रचमात्र भी अनुताप नही है। उन पक्तियोको आप व्यर्थ ही अनुताप और नम्रता व्यंजक वतलाकर उनके पीछे अपनी रक्षा करना चाहते हैं।" .....