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वैद्यजीका वियोग
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मुझे यह प्रकट करते हुए बडा ही दुख होता है कि मेरे मित्र देहली के सुप्रसिद्ध राजवैद्य रसायनशास्त्री १० शीतलप्रसादजी ५ सितम्बर सन् १६३० को ६५ वर्षकी अवस्था में स्वर्गवासी हो गये हैं । आपके वियोग से, नि सन्देह, जैन समाज को ही नही, किन्तु मानव समाजको एक बहुत बडी हानि पहुँची है और देहलीने अपना एक कुशल चिकित्सक तथा सत्परामर्शक खो दिया है । आपका अनुभव वैद्यकमे ही नही, किन्तु यूनानीहिक्मत मे भी बढा-चढा था, अग्रेजी चिकित्सा प्रणालीसे भी आप अभिज्ञ थे, साथ ही, आपके हाथ को यश था, और इसलिए दूरसे भी लोग आपके पास इलाज के लिये आते थे। कई वेस आपके द्वारा ऐसे अच्छे किये गये, जिनमे डाक्टर लोग ऑपरेशनके लिये प्रस्तुत हो गये थे । परन्तु आपने उन्हे बिना ऑपरेशन के ही अच्छा कर डाक्टरोको चकित कर दिया था । आतुरोके प्रति आपका व्यवहार वडा ही सदय था, प्रकृति उदार थी और आप सदा हँसमुख तथा प्रसन्नचित्त रहते थे । आपका स्वास्थ्य इस अवस्थामे भी ईर्षायोग्य जान पडता था ।
आपकी वृत्ति परोपकारमय थी, धर्मार्थ औषधि वितरण करने का भी आपके ओपधालयमे एक विभाग था । आप धर्मके कामो मे बराबर भाग लेते थे और समय-समयपर धार्मिक सस्थाओको दान भी देते रहते थे । समन्तभद्राश्रमको भी आपने १०१ ) रु० की सहायता अपनी ओरसे और ५०) रु० अपनी पुत्रवधूकी ओरसे प्रदान की थी। आप आश्रम के आजीवन सदस्य थे, आश्रमकी स्थापनामे आपका हाथ था और इसलिये आपके इस वियोगसे आश्रमको भी भारी क्षति पहुँची है ।