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युगवीर-निवन्धावली
उक्त घटनाकी तुकबन्दी बना दी और कहा कि इसे अपनी काकी ( चाची) को जाकर सुनाना
'काका' तो चिमनीसे डरत फिरत है, काट लिया चिमनीने 'सी-सी' करत है ! 'अव नहिं छूएँगे' ऐसो कहत हैं,
देखो जी काकी, यह वीर बनत है !! इस तुकबन्दीको सुनकर हेम बडा प्रसन्न हुआ-आनन्दविभोर होकर नाचने लगा-मानो उसके भावका मैंने इसमे पूरा चित्रण कर दिया हो । उसी क्षण उसने इसे याद कर लिया और वह काकीको ही नही, किन्तु अम्मा और दद्दाको भी सुनाता और गाता फिरा । इस समय वह मुझसे और भी अधिक हिलमिल गया। मैं उसके मनोनुरूप अनेक प्रकारकी तुकवन्दिया बनाकर दे दिया करता, जिन्हे वह पसन्द करता था। एक दिन प्रेमीजी कहने लगे-हेम तुम्हारी कवितामोको खूब पसद करता है । कहता है-बाबूजी बडी अच्छी कविता बनाना जानते हैं। बचपनमे कहानी सुननेका उसे बडा शौक था और वह मुझसे भी अनुरोध करके कहानी सुना करता था। बम्बईसे मेरा चला आना उसे बहुत अखरा । प्रेमोजी लिखते रहे-हेम आपको याद करता रहता है। मैं भी प्रेमीजीको लिखे गये पत्रोमे उसे बराबर प्यार तथा आशीर्वाद भेजता रहा।
कुछ अर्से के बाद जब प्रेमीजी सख्त बीमार पडे, जीवनकी बहुत ही कम आशा रह गई, तव उन्होने वसीयतनाममै हेमकी शिक्षाका भार मेरे ही सुपुर्द किया था। परन्तु सौभाग्यसे प्रेमीजीका वह अरिष्ट टल गया और वे स्वय ही हेमकी शिक्षादीक्षा करनेमे समर्थ हो सके। समय-समय पर हेमकी शिक्षा