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हेमचन्द्र स्मरण
चि० हेमचन्द्रकी याद आते ही एक सौम्य आकृति मेरे सामने घूम जाती है-गोरा रंग, लम्बा कद, दुबला-पतला वदन | इस आकृतिके मेरे सामने दो चित्र आते हैं-एक वाल्यकाल : कोई ८-९ वर्षकी अवस्थाका, और दूसरा यौवनकाल : विवाहसे पूर्व कोई २० वर्षको अवस्थाका । सन् १६१७ और १९२८ मे दो बार मुझे कुछ-कुछ महीनोके लिये बम्बई ठहरनेका अवसर मिला है और यह ठहरना हेमके पिता सुहृद्वर प० नाथू. रामजी प्रेमीके पास ही हुआ है, उन्हीके खास अनुरोधपर मैं बम्बई गया हूँ। इन्ही दोनो अवसरोपर हेम मेरे विशेप परिचयमे आया है। बाल्यावस्थासे ही वह मुझे सुशील तथा होनहार जान पडा, उसमे विनय गुण था, सुनने सोखनेकी रुचि थी, ग्रहण-धारणकी शक्ति अच्छी विकासोन्मुखी थी और सबका प्यारा था। उसके बाल्यकाल (सन् १९१७ ) की एक घटनाका मुझे आज भी स्मरण है। एक दिन सध्याके समय हेमके काका ( चाचा ) लालटेनकी कोई चिमनी साफ कर रहे थे, चिमनी टूटी हुई थी। वह उनके हाथमे चुभ गई, उसके आघातसे वे कुछ सिसकने लगे, उन्होने हतोत्साह होकर चिमनीको रख दिया और कहाकि अब इसे हाथ नही लगायेंगे। हेम उनके पास था, वह यह सब देखकर कुछ भौचकसा रह गया। उसने तुरन्त ही मेरे पास आकर इस घटनाकी जिन शब्दोमे रिपोर्ट दी उनसे यह मालूम होता था कि वह अपने काकाकी उस प्रवृत्तिको अच्छा नहीं समझ रहा है। मैंने उसी समय हेमके विनोदार्थ