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युगवीर-निबन्धावली
आठ पक्तियोमे मरुदेवीकी जिस स्वप्नावलीका उल्लेख है उसमे साफ तौरपर, प्रति पंक्ति दो स्वप्नोंके हिसाब से सोलह स्वप्नोके नाम दिये हैं । कडवककी वें पक्तियाँ इस प्रकार हैं
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दीes मयगलु मय- गिल्ल-गंडु, दीसइ वसहुक्खय-कमल- सडु | दीसह पंचमुह पहरच्छि, दीसह णव- कमलारूढ़ - लच्छि । दीसह गंधुक्कड़ -कुसुम-दामु, दीसइ छण-चंदु मणोहिरामु । दीसह दिrयर कर - पज्जलन्तु, दीसइ झस-जुयलु परिभमंतु ॥ दीसह जल-मंगल-कलसु वण्णु, टीसइ कमलायरु कमल - छपणु दीसइ जलणिहि गजिय-जलोहु, दीसह सिंहासणु दिण्ण-सोहु ates विमाणु घण्टाल-मुहलु दीसह णागालउ सव्वु धवलु । दीसह मणि-नियरु परिप्फुरन्तु, दीसइ धूमद्धउ धग धगन्तु ॥ इनमे जिन सोलह स्वप्नोके देखनेका उल्लेख हैं वे क्रमश. इस प्रकार हैं - १ मद झरता हुआ हाथी, २ कमलवनको उखाडता हुआ वृषभ, ३ विशालनेत्र सिंह, ४ नवकमलारूढ़ लक्ष्मी, ५ उत्कट गन्धवाली पुष्पमाला, ६ मनोहर पूर्णचन्द्र, ७ किरणोसे प्रदीप्त सूर्य, ८ परिभ्रमण करता हुआ मीन-युगल, ८ जल-पूरित मंगल कलश, १० कमलाच्छादित पद्म-सरोवर, ११ गर्जना करता हुआ समुद्र, १२ दिव्यसिंहासन, १३ घण्टालियोसे मुखरित विमान, १४ सब ओरसे धवल नाग-भवन, १५ देदीप्यमान रत्न समूह, १६ धधकती हुई अग्नि ।
यह कुछ समझ मे
इतने स्पष्ट उल्लेखके होते हुए भी डा० भायाणी जैसे डिग्री - प्राप्त विद्वानने अपने पाठकोको वस्तु-स्थितिके विरुद्ध चौदह स्वप्न देखने की अन्यथा बात क्यो बतलाई, नही आता । मालूम नही इसमे उनका क्या रहस्य है ? क्या इसके द्वारा वे यह प्रकट करना चाहते हैं कि इस विषय मे ग्रन्थकार श्वेताम्बर मान्यताका अनुयायी था ? यदि ऐसा है तो यह ग्रन्थकारके प्रति ही नही, बल्कि अपने अग्रेजी पाठकोके
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