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युगवीर-निवन्धावली उन्हे अहकारका शिकार समझकर क्षमा कर देना चाहिए। और आगेको उनके व्यक्तित्वके प्रति कोई द्वेषभाव नही रखना चाहिये । प्रतिवर्ष क्षमावणी पर्व मनाना और फिर भी कानजीस्वामीको उनकी किसी भूल-गलती आदिके लिये अब तक क्षमा न किया जाना, प्रत्युत इसके उनसे उपभाव बनाये रखना, क्षमावणी पर्व मनानेकी विडम्बनाको सूचित करता है। अत आगे ऐसा नही होना चाहिये । इससे सभी समाजका वातावरण शीघ्र सुधर सकेगा। इसके सिवाय मेरा यह भी निवेदन है कि जयपुरमे आचार्य शिवसागरजीके समक्ष आयोजित योजनाके अनुसार दोनो पक्षके विद्वानोमे जो लिखित तत्त्वचर्चा हुई है उसे अब शीघ्र प्रकाशित कर देना चाहिये, इससे अनेक विषयोमे बहुतोका भ्रम दूर हो सकेगा तथा वस्तुस्थितिको उसके ठीकरूपमे समझनेका अवसर मिलेगा ।
१ जैनसन्देश, ता० २८ नवम्बर, १९६५