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एक विदारया सम्पादक
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इस के प्रथम दो चरणो तथा
अन्तिम चरणने और दूसरे पयो भी अनेक उणीव है कि वह कविता २८ मत छन्दम रची गई जिसमें १६, १२ मात्रापर यति अथवा विराम है । परन्तु इस पत्रका तीनरा चरण ३१ मायाको लिये हुए है । उसका 'बना बनाया' पाठ बहुत हो सकता है। उसके स्थानपर 'वना है' अथवा 'समजली' जैसा कोई पाठ होना चाहिये था ।
पैसा बिना नीरस दुनिया है, ज्ञान त्यान सत्र नीरस, नीग्स जीवन, नीरस तन मन आन बान सब नीरस, वही धनपति सुनी सम हे अंटी में पैसा कवि, कीविद और कलाकर भू विम्मय कैसा ? ॥२॥ इनमें 'विन' की जगह 'विना' और 'धनपती' को जगह 'धनपति' बना देने से मात्राकी कमी- वेशी होकर पदभंग हो गया है | साथ ही चौथे चरण में 'और कलाकार सव' यह शब्दविन्यास भट्टा जान पड़ता है। इसके स्थानपर 'ओ कलाकार सब' ऐसा कुछ होना चाहिये था ।
उस पैसे के पीछे होता, मानव सब कुछ खोकर । जननी, जन्म भूमि, द्वारा तजकर दर-दर खाता ठोकर । न होती धनदासता तो यह क्या मिलना अपचाद ? परिभवम् शूली फिर क्यों देता जग जल्लाद ?
इस पद्यके प्रथम चरणमे 'होता' पदका प्रयोग वे - मुहावरा है, क्योकि उसके साथमे 'क्या होता ?" इम जिज्ञासाका कोई समावान नहीं है, जिसका होना जरूरी था । उस पदके स्थानपर यदि 'पडता' जैसे पदका प्रयोग किया जाता तो ठीक होता । दूसरे चरणमे 'तज' के अनन्तर 'कर' शब्द अधिक है, जिससे पदभग हो जाता है । तीसरे चरणका शब्द