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युगवीर निवन्धावनी
हूँ कि इस लेखमे कही-कही पडितोकी आलोचनाके अवसरपर, इष्ट न होते हुए भी, मुझे सत्यके अनुरोधसे कुछ अप्रिय-कटुक शब्दोका प्रयोग करना पडा है, जिसके लिये मैं क्षमा चाहता हूँ। उनके प्रयोगोमे मेरा हेतु शुद्ध है--मेरा किसीसे द्वेष नही है और न द्वेषादिके वश किसी व्यक्ति-विशेषपर आक्षेप करनेका मेरा कोई अभिप्राय ही है। इसीसे ऐसे किसी भी पडितका नामोल्लेख साथमे नही किया गया है। मुझे इन पडितोपर होते हुए आक्र मणो और इनकी अवज्ञाको देखकर दुख होता है। साथ ही, इनकी दयनीय स्थितिके कारण जैनधर्मकी जो अप्रभावना हो रही है और जनसमाजको जो क्षति पहुंच रही है वह असह्य जान पडती है-उससे चित्तको वहत ही खेद होता है । और इसलिये मैं सच्चे हृदयसे अपने इन पडित भाइयोका सुधार चाहता हूँ..इन्हे सब प्रकारसे इनकी पदवियोके अनुरूप देखना चाहता हूँ। उसीके लिये मेरा यह सब प्रयत्न है-भले ही इसपरसे कुछ पडित भाई मुझे अपना द्वेपी समझें । परन्तु एक दिन आयेगा जब उन्हे अपनी भूल मालूम पड जायगी और वे उसके लिये पछतायेंगे।
साथ ही, मैं इतना और भी निवेदन कर देना चाहता हूँ कि समाजमे कुछ इनेगिने पडित ऐसे भी हैं जो इस लेखके अपवादरूप हैं और जिनके विषयमे मेरा विशेष आदरभाव है। वे इस लेखको अपने लिये न समझें। उन्हे इस आन्दोलनमे भाग लेकर अपनी पोजीशनको और भी ज्यादा स्पष्ट कर देना चाहिये ।
क्या ही अच्छा हो यदि कुछ उदारमना पडित, उक्त उपायसे सहमत होते हुए, खुद ही अपनेको इस यज्ञदीक्षाके लिये पेश करें और इस आन्दोलनमे खासतौरसे हाथ बटाएँ।' १ जैन जगत,
ता० ८-११-१९३६