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युगवीर-निवन्धावली
इन सब बातोको भी ध्यानमे लेना चाहिये और तब यह निर्णय करना चाहिये कि क्या उक्त सुझाव ठीक है ? यदि ठीक नही है तो क्यो ?
(८) १४ वी गाथामे शुद्धनयके विषयभूत आत्माके लिए पाँच विशेषणोका प्रयोग किया गया है, जिनमेसे कुल तीन विशेषणोका ही प्रयोग १५वी गाथामे हुआ है, जिसका अर्थ करते हुए शेष दो विशेषणो 'नियत' और 'असयुक्त' को भी उपलक्षणके रूपमे ग्रहण किया जाता है, तब यह प्रश्न पैदा होता है कि यदि मूलकारका ऐसा ही आशय था तो फिर इस १५वी गाथामे उन विशेषणोको क्रमभग करके रखनेकी क्या जरूरत थी ? १४वी गाथा' के पूर्वार्धको ज्योका त्यो रख देने पर भी शेष दो विशेषणोको उपलक्षणके द्वारा ग्रहण किया जा सकता था । परन्तु ऐसा नही किया गया, तब क्या इसमे कोई रहस्य है, जिसके स्पष्ट होनेकी जरूरत है ? अथवा इस गाथाके अर्थमे उन दो विशेषणोको ग्रहण करना युक्त नही है ?
विज्ञप्ति के अनुसार किसी भी विद्वानने उक्त गाथाकी व्याख्याके रूपमे अपना निबन्ध भेजने की कृपा नही की, यह खेदका विषय है | हालाँकि विज्ञप्तिमे यह भी निवेदन किया गया था कि 'जो सज्जन पुरस्कार लेनेकी स्थितिमे न हो अथवा उसे लेना न चाहेंगे उनके प्रति दूसरे प्रकारसे सम्मान व्यक्त किया जायगा । उन्हे अपने अपने इष्ट एव अधिकृत विषय पर लोकहितकी दृष्टिसे लेख लिखनेका प्रयत्न जरूर करना चाहिये ।'
१. उक्त १४ वीं गाथा इस प्रकार है :
जो पस्सदि अप्पाणं अबद्धपुट्ट जणण्णयं णियदं । अविसेसमसजुत्तं तं सुद्धणय वियाणीहि ॥ १४ ॥