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युगवीर-निबन्धावली
उपाधिका धारक । श्रीयुत पण्डित मनोहरलालजीने भी अपनी टीकामे, जिसे उन्होने सस्कृतादि टीकाओके आधार पर बनाया है, ऐसा ही अर्थ सूचित किया है।
६ इस ग्रन्थके सम्पादक प्रोफेसर शरच्चन्द्रजी घोषालने अपने एक पत्रमे, जो सन् १९१६ के जैनहितैषीके छठे अकमे मुद्रित हुआ है, चामुडराय और नेमिचद्रका समय ईसाकी ११वी शताब्दि प्रगट किया था, और गोम्मटेश्वरकी मूर्तिके प्रतिष्ठित होने का समय ईस्वी सन् १०७४ बतलाया था। इसके प्रत्युत्तरमे मैने कुछ प्रमाणोके साथ उक्त समयको ईसाकी १०वी शताब्दि सूचित करते हुए प्रोफेसर साहबसे यह निवेदन किया था कि वे उसपर फिरसे विचार करें। यद्यपि प्रोफेसर साहबने उक्त लेखका कोई उत्तर नहीं दिया, परन्तु इस ग्रथकी प्रस्तावनासे मालूम होता है कि उन्होने उस पर विचार जरूर किया है।
और इसीलिए उन्होने अपने पूर्वविचारको बदलकर मेरी उस सूचनाके अनुसार चामुडरायका समय वही ईसाकी १० वी शताब्दि, इस प्रस्तावनामे, स्थिर किया है। साथ ही इतना विशेष और लिखा है कि गोम्मटेश्वरकी मूर्ति ईस्वी सन् ६८० मे, २ री अप्रैलको प्रतिष्ठित हुई है । आपके लेखानुसार इस तारीख ( २ अप्रैल ६८०) मे ज्योतिषशास्त्रानुसार वे सब योग पूरी तौरसे घटित होते है जो बाहुबलिचरित्रके 'कल्क्यब्दे षट्शताख्ये इत्यादि पद्यमे वर्णित है। अर्थात् दूसरी अप्रैल सन् ६८० को 'विभव' सम्वत्सर, 'चैत्र शुक्ल पचर्मी' तिथि, रविवारका दिन, सौभाग्य योग और मृगशिरा नक्षत्र था। उसी दिन कुभ लग्नमे यह प्रतिष्ठा हुई है। रही कल्कि सवत् ६०० की बात, उसके सबधमे आपने यह कल्पना उपस्थित की है कि 'कल्क्यब्दे षट्शताख्ये' का अर्थ कल्कि सवत् ६०० के स्थानमे