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चिन्ताका विषय अनुवाद
आजकल बहुधा ग्रन्थके अनुवादोकी बड़ी ही दुर्दशा है, उनके लिखने-लिखानेमे बहुत ही, असावधानी तथा प्रमादसे काम लिया जाता है, जिसके जीमे आता है वही कलम उठाकर किसी ग्रथका अनुवाद या उसपर टीका-टिप्पणी लिखने बैठ जाता है और इस वातकी प्राय कोई पर्वाह नही की जाती कि अनुवादकमे उस विषयकी अच्छी योग्यता अथवा उसका पर्याप्त अनुभव भी है या कि नहीं। कितने ही विद्वान् तो मात्र अपनी आजीविका चलाने या उसमे सहायता पहुँचानेके लिये ही अनुवाद-कार्य करते हैं और प्रकाशकोसे फार्मोके हिसाबसे अपनी उजरत लेते हैं। उन्हे अपनी योग्यता और अनुभवको देखनेकी क्या पडी ? खासकर ऐसी हालतमे जबकि समाज-द्वारा उनकी कृतियोकी कोई अच्छी जाँच न होती हो। ऐसे लोगोकी दृष्टि ग्रथके गहरे अध्ययन और मननकी ओर प्राय नही होती, और इसलिये वे अनुवादमे अधिक अथवा पर्याप्त परिश्रम न करके प्राय. चलता हुआ साधारण अनुवाद ही प्रस्तुत करते हैं, जिससे थोडे समयमे अधिक पैसे पैदा किये जा सकें। ग्रन्थ भी अनुवादके लिए प्राय ऐसे ही चुने जाते हैं जिनकी भाषा सरल हो, अर्थ भी गभीर न हो और इसलिए जिनके अनुवादमे अधिक परिश्रम न करना 'पडे। इसीसे पिछले भट्टारको आदिका पुराण-चरितादि-विषयक साधारण साहित्य ही आजकल अधिक अनुवादित हो रहा है। मुझे ऐसे कितने ही आधुनिक अनुवादोको देखनेका अवसर मिला है जिनमे कही तो मूलग्रन्थकी कुछ बातोको छोड दिया गया, कही