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युगवीर-निवन्धावनी देखना चाहिए। कोई वजह नहीं है कि क्यो त्रुटिपूर्ण साधुओ और त्रुटिपूर्ण ग्रन्थोकी, सम्यक् आलोचना-द्वारा, त्रुटियाँ दिखलाकर जनताको उनसे सावधान न किया जाय और क्यो इस तरहपर उन्नतिके मार्गको अधिकाधिक प्रशस्त वनानेका यत्न न किया जाय।
आशा है, वस्तुस्थितिका दिग्दर्शन करानेवाले इस लेखपर सेठ साहव शान्तिके साथ विचार करेंगे और वन सकेगा तो सयत-भाषामे, योग्य उत्तरसे भी कृतार्थ करनेकी कृपा करेंगे।
नोट-सेठ साहवका कोई उत्तर प्राप्त नही हुमा ।
१. जैन हितैषी, भाग १५ अंक ६, अप्रेल १९२१