________________
प्रवचनसारका नया सस्करण
५७९
कुन्दके विदेहगमन और श्रीमधरस्वामीके समवसरणमे पहुँच कर धार्मिक प्रकाश प्राप्त करनेका उल्लेख करते हुए, यह बतलाया है कि विदेहगमनकी ऐसी ही कथाएँ उमास्वाति तथा पूज्यपादाचार्यके विपयमे भी पाई जाती हैं, जिससे कुन्दकुन्दके विदेहगमनकी घटना सदिग्ध-सी हो जाती है। साथही उसे सदिग्धताकी कोटिसे निकालनेकी कुछ इच्छा से यह भी सुझाया है कि 'कुन्दकुन्दने अपने प्रवचनसारकी तीसरी गाथामे जो मानुष क्षेत्रमे स्थित वर्तमान अर्हन्तोको नमस्कार किया है उसी पर कथा-वर्णित इस वातकी कल्पना की गई मालूम होती है कि 'कुन्दकुन्दने यहाँसे विदेह-स्थित श्रीमधरस्वामीको नमस्कार किया था और उसीके फलस्वरूप उन्हे विदेह-क्षेत्रकी यात्राका अवसर प्राप्त हुआ था।' कुछ विद्वानोने प्रो० साहवकी इस सूचना एव कल्पनाकी प्रशसा भी की है और उसे "गजबकी सूझ' तक लिखा है। परन्तु मुझे वह निर्दोप मालूम नही होती, क्योकि एक तो उक्त गाथामे 'वदामि य वट्टते अरहंते माणुसे खेत्ते' शब्दोंके द्वारा मनुष्यक्षेत्रमे वर्तमान सभी अर्हन्तोको बिना किसी विशेपके-श्रीमधरका नामोच्चारण तक न करके-नमस्कार किया गया है, जिससे उस प्रचलित कथाका कोई समर्थन नही होता है जिसमे ध्यानस्थ होकर मन-वचन-कायकी शुद्धिपूर्वक पूर्वविदेहक्षेत्रके मात्र श्रीमधरस्वामीको नमस्कार करनेकी बात कही गई हैं। दूसरे, यदि ऐसे निर्विशेप नमस्कारसे श्रीमधरस्वामीको ही नमस्कार किया जाना मान लिया जाय तो यह नही कहा जा सकता कि पूज्यपादने श्रीमधरस्वामीको नमस्कार नही किया है, क्योकि उन्होने अपनी सिद्धभक्तिके अन्तिम पद्यमे "मवन्त सकलजगति ये" आदि पदोंके द्वारा जगत-भरके सभी वर्तमान देवाधिदेवोको नमस्कार किया है, जिसमे विदेहक्षेत्रके