________________
३७ प्रवचनसारका नया संस्करण
५७७ अब मैं इन विभागोमे आई हुई प्रस्तावनाकी कुछ खासखास बातोका थोडा-सा परिचय, यथावश्यक अपनी समालोचनाके साथ, और भी करा देना चाहता हूँ।
प्रथम विभागमे, पट्टावली आदिके अन्तर्गत एक साम्प्रदायिक पद्यके आधारपर कुन्दकुन्दाचार्यके पाँच नामोकी चर्चा करते हुए और यह बतलाते हुए कि उनका मूलनाम 'पद्मनन्दि' उत्तरनाम कोडकुन्दाचार्य था, 'वक्रग्रीव' तथा 'गृद्धपिच्छाचार्य' नामोको अप्रामाणिक सिद्ध किया है और प्रकट किया है कि इन नामोके दूसरे ही आचार्य हुए है। परन्तु 'एलाचार्य' नामके विपयमै निश्चित रूपसे ऐसा कुछ न कहकर उसपर अपना सन्देह ही व्यक्त किया है। सन्देहका प्रधान कारण' 'ज्वालिनीमत' नामक ग्रन्थमे उसके मूल-कर्तृत्व रूपसे हेलाचार्य अथवा एलाचार्य नामका उल्लेख है, जिसका जीवनकाल प्रो० साहब कुछ अधिक पहलेका अनुमान करते हैं। परन्तु इन्द्रनन्दिके ज्वालिनीमतमे उसके मूलकर्ता हेलाचार्यका जिस रूपमे उल्लेख किया है उसपरसे वह कुन्दकुन्द ही नही, किन्तु कुन्दकुन्दके समकालीन कोई दूसरा व्यक्ति भी नही हो सकता, क्योकि ज्वालिनीमत शक संवत् ८६१ ( वि० स० ६६६) का बना हुआ है और उसमें उक्त हेलाचार्यकी अविच्छिन्न शिष्य-परम्परामे गाङ्गमुनि, नीलग्रीव, बीजावाख्य, आर्याक्षान्तिरसब्बा और क्षुल्लक विरूवट्ट का उल्लेख करके यह स्पष्ट लिखा है कि इति अनया गुरुपरिपाट्याऽविच्छिन्नसम्प्रदायेण चागच्छत् कन्दर्पण
१. गौणकारण, चिक्कहनसोगेका एक लेखनकार विहीन शिलालेख है, जिसमें देशीगण ओर पुस्तक-गच्छके एक एलाचार्यका उल्लेख है, परन्तु उसके साथ कुन्दकन्दकी एकता अथवा अनेकताका कोई पता नहीं चलता है, ऐसा लिखा है।