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प्रवचनसारका नया सस्करण
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क्रियावाद आदिके लक्षणकी गलतफहमी पर अवलम्बित है। इसके सिवाय, आइन्स्टाइनके अपेक्षावाद (Einstein's theory of relativity ) तथा मॉडर्न फिलासोफीके साथ स्याद्वादकी तुलना करते हुए उसकी विशेषताको घोपित किया है। और इस तरह यह प्रकरण भी कितनी ही उपयोगी सूचनाओ तथा विचारकी सामग्रीको लिए हुए है। ___पाँचवें विभागमे, टीकाकार अमृतचद्र' सूरिके समयका विचार करते हुए, इतना तो निश्चितरूपसे कहा गया है कि वे ईसाकी ७ वी और १२ वी शताब्दीके मध्यवर्ती किसी समयमे हुए हैं। परन्तु वह मध्यवर्ती समय कौन-सा है, इसका अनुमान करते हुए उसे ईसाकी १० वी शताब्दीका प्राय समाप्तिकाल बतलाया है और ऐसा बतलानेके तीन कारण सुझाए हैं—(क) टीकामे कुछ गाथाओका गोम्मटसारसे उद्धृत किया जाना, (ख) ढाढसीगाथाका अमृतचन्द्रके द्वारा रचा जाना, जिसमे नि पिच्छसघका उल्लेख है जो कि देवसेनकृत दर्शनसार के अनुसार सन् ८९६ मे उत्पन्न हुआ था, (ग) अमृतचद्रका देवसेनकी आलापपद्धतिसे परिचित होना। यद्यपि ये तीनो हेतु अभी पूरी तौरसे सिद्ध नही है, क्योकि
(क) गोम्मटसार एक सग्रह ग्रथ है, उससे जिन चार गाथाओको उद्धृत बतलाया जाता है वे वास्तवमे उसी परसे उधृत की गई है यह बिना काफी सबूतके नहीं कहा जा सकता। उनमेसे "जावदिया वयणवहा' आदि तीन गाथाएँ तो धवलामे भी पाई जाती है बल्कि 'णिद्धस्स णिद्धण' और 'णिद्वाणिद्ध'ण'
१ प्रो० साहवने भी इन्हें पूरी तौर से सिद्ध एव सवल हेतु नहीं माना है-मात्र सभावनाओंके रूपमें ही व्यक्त किया है और वह भी समुच्चयरूपसे ।