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युगवीर-निवन्धावली कुन्दकुन्दके द्वारा प्राचीन माहित्यपरसे सग्रह की गई हैं। ऐसे विशेष विचारकी जररत जरर थी, क्योकि कुन्दकुन्दके प्रवचनसागदि ग्रन्योकी कितनी ही गाथाएं ऐसी हैं जो यतिवृपभकी तिलोयपण्णत्ती (ग्रिलोकप्रज्ञप्ति ) में प्राय ज्योकी त्यो अथवा थोडेसे शब्दभेदके माथ पाई जाती हैं, जिससे यह सन्देह होता है कि कुन्दकुन्दने उन्हें तिलोयपण्णत्ती परसे लिया अथवा यतिवृपभने कुन्दकुन्दके ग्रन्थोपरसे उनका संग्रह किया है। उदाहरणके तौरपर ऐसी गाथाओके कुछ नमूने इस प्रकार है
एस सुरासुरमणुसिंदवदियं धोदघादिकम्ममलं । पणमामि वद ढमाणं तित्थं धम्मस्स कत्तारं ॥१॥
-प्रवचनसार एस सुरासुरमणुसिंदबंदियं धोदघादिकम्ममलं । पणमामि वढ्ढमाणं तित्थं धम्मस्स फत्तारं ।। ७७ ॥
-तिलोयप० अन्तिमभाग खंदं सयलसमत्थं तस्स दु अद्ध भणंति देसो ति । अदद्धं च पदेसो परमाणु चेव अविभागी ॥ ७५ ॥
- पचास्तिकाय खंदं सयलसमत्थं तस्स य अद्ध भणंति देसो त्ति । अद्धद्धच पदेसो अविभागी होदि परमाणू ॥ ९५ ॥
~तिलोयप० अन्तिमभाग इन्द्रनन्दि और विवुधश्रीधरके श्रुतावतारोके कथनानुसार यतिवृषभ कुन्दकुन्दसे पहले हुए हैं। यदि ऐसा है तो यह कहना • होगा कि कुन्दकुन्दने आगमवाक्योके तौरपर तिलोयपण्णत्तीकी कुछ गाथाओको अपने ग्रथोमे सग्रह किया है। और यदि ऐसा न होकर कुन्दकुन्दकी गाथाएँ उनकी स्वतत्र रचनाएँ हैं तो फिर यह कहना होगा कि यतिवृषभ कुन्दकुन्दके बाद हुए हैं और उन्होने कुन्दकुन्दके ग्रथोपरसे कुछ गाथाएँ अपनी तिलोयपण्णत्तीमे