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युगवीर-निवन्धावली
श्रीमघरम्वामी भी आ जाते हैं। जव पूज्यपादने भी बीमघरस्वामीको नमस्कार किया है तव नमस्कार-सामान्यपरसे कुन्दकुन्दके विदेहगमनकी घटना को सत्य, और पूज्यपादके विदेहगमनकी घटनाको असत्य ( पोसे जोडी हुई ) भी नहीं कहा जा सवता। तीसरे, जब विदेह-क्षेत्रमं वर्तमान तीर्थकरोका होना आगमोदित है और नामायिकादि आवश्यक कृति-कर्मके अवसरपर सभी मुनिजन नित्य ही विदेहक्षेत्रके उन वर्तमान तीर्थकरोको नमस्कार करते है-जब कि वे "अढाइज्जदीव-दोसमुद्देसु पण्णारसकम्मभूमिसु जाव अरहंताणं मयवताणं • •
सदा करेमि किरियमं" इत्यादि प्रकारके पाठ बोलते हैं, तव विदेह क्षेत्रके अर्हन्तोको अपने ग्रंथमे नमस्कार करना एक साधारण-सी बात है, उसपरसे किसीके विदेहगमनका नतीजा नहीं निकाला जा सकता । और न वैसी कोई कल्पना ही की जा सकती है। यो तो वहुतसे ग्रथकारोने अपने-अपने ग्रथोमे विदेहक्षेत्रवर्ती तीर्थकरोको नमस्कार किया है। क्या वे सभी विदेहक्षेत्र हो आए हैं ? अथवा उनके ऐसे नमस्कारादिपरसे लोगोने उनके विदेहक्षेत्र-गमनकी कल्पना की है ? कदापि नही । अत गाथाके उक्त शब्दोपरसे कुन्दकुन्दके विदेहगमनकी कल्पनाका जन्म होना मुझे तो समुचित प्रतीत नहीं होता और न ऐसे उल्लेखोपरसे वह कुछ सत्य ही कहा जा सकता है । वास्तवमे विदेहगमन-जैसी असाधारण घटनाका स्वय कुन्दकुन्दके द्वारा कोई उल्लेख न होना सन्देहसे खाली नहीं है।
दूसरे विभागमे-पृष्ठ १६, १७ पर--मेरे इस मतपर कुछ आपत्ति की गई है कि कुन्दकुन्द भद्रबाह द्वितीयके शिष्य थे और यह सभावना व्यक्त की गई है कि मैने बोधपाहुडकी गाथा न० ६१ के साथ, जिसमे 'सीसेण य भदबाहुस्स' शब्दोके