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युगवीर- निबन्धावली
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मुख, पृ० ३८ पर अप्रत्याख्यानकी जगह 'प्रत्याख्यान' और प्रत्याख्यानकी जगह 'अप्रत्याख्यान' पृ० ४८ पर अजीवविपयको 'जीवविषय' गलत लिखा है । पृ० XXXIII पर पेज न० X का हवाला गलत दियागया, पृ० XLV पर द्रव्यसग्रहकी कुछ गाथाओंके नम्बर ठीक नही लिखे गये और पृ० XLI पर गोम्मटसारके 'जीवकाड' का सपादन प० मनोहरलालजीके द्वारा सन् १९१४ में होना लिखा है जो ठीक नही, उसका सपादन प० खूबचदजीने सन् १९१६ मे किया है । इन सब बातोंके सिवाय शुद्धिपत्रमे पृ० XLV का जो सशोधन दिया है उसके द्वारा शुद्ध पाठको उलटा अशुद्ध बनाया गया है, क्योकि द्रव्यसग्रह द्वितीय भागमे पुण्य-पापकी जगह जीव- अजीवका कथन नही है | इतना होने पर भी संपूर्ण ग्रथ अपेक्षाकृत बहुत शुद्ध और साफ छपा है, यह कहनेमे कोई सकोच नही हो सकता ।
२ ग्रन्यके उपोद्घातमे दिगम्बर सम्प्रदायके अनुसार चार अनुयोगोके नाम क्रमश चरणानुयोग, गणितानुयोग, धर्मकथानुयोग और द्रव्यानुयोग दिये है और लिखा है कि 'चरणानुयोगको प्रथमानुयोग भी कहते है, क्योकि वह अनुयोगोकी सूची मे सबसे पहले आता है ।' परन्तु यह लिखना बिल्कुल प्रमाणरहित है । चरणानुयोगको प्रथमानुयोग नही कहते और न दिगम्बर सम्प्रदायमे उपयुक्त क्रमसे चार अनुयोग माने ही गये है । रत्नकरडश्रावकाचारादि ग्रन्थोसे प्रथमानुयोग और चरणानुयोगका स्पष्ट भेद पाया जाता है । उनमे प्रथमानुयोग से अभिप्राय धर्मकथानुयोगसे है और चरणानुयोगको तीसरे नम्बर पर रक्खा है । इसी उपोद्घातमे 'चन्द्रप्रज्ञप्ति' को द्वादशाङ्गमेसे एक अग सूचित किया है, जो अग न होकर एक ग्रन्थका नाम है, अथवा दृष्टिवाद नामके अगका एक अश - विशेष है ।