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। युगवीर-निवन्धावली देखने-जाननेमे हेतु शुद्धात्मा और जिनशासनका ( स्वरूपादिसे ) एकत्व है। यह हेतु कानजी स्वामीके द्वारा नया ही आविष्कृत हुआ है, क्योकि प्रस्तुत मूल गाथामे न तो ऐसा उल्लेख है कि 'जो शुद्धात्मा वह जिनशासन है' और न सारे जिनशासनकी जानकारीको सिद्ध करनेके लिए किसी हेतुका ही प्रयोग किया गया है.---उसमे तो 'इसलिये' अर्थका वाचक कोई पद वा शब्द भी नही है जिससे बलात् हेतुप्रयोगकी कुछ कल्पना की जाती। ऐसी हालतमे स्वामीजीने अपने उक्त तर्कवाक्यकी बातको जो आचार्य कुन्दकुन्द-द्वारा गाथामे कही गई बतलाया है वह कुछ सगत मालूम न होकर उनकी निजी कल्पना ही जान पड़ती है। अस्तु, इस कल्पनाके द्वारा जिस नये हेतुकी ईजाद की गई है वह असिद्ध है अर्थात् शुद्धात्मा और समस्त जिनशासनका एकत्व किसी प्रमाणसे सिद्ध नहीं होता, दोनोको एक माननेमे अनेक असंगतियो अथवा दोषापत्तियाँ उपस्थित होती है, जिनका कुछ दिग्दर्शन एव स्पष्टीकरण ऊपर 'शुद्धात्मदर्शी और जिनशासन' शीर्षकके नीचे किया जा चुका है। । जब यह हेतु असिद्धसाधनके रूपमे स्थित है तब इसके द्वारा समस्त जिनशासनको देखने-जानने रूप साध्यकी सिद्धि नहीं बनती। अभी तक सम्पूर्ण जिनशासनको देखने-जाननेका विषय विवादापन्न नही था~मात्र देखने-जाननेका प्रकारादि ही जिज्ञासाका विषय बना हुआ था-अब इस हेतु-प्रयोगने सपूर्ण जिनशासनके देखने-जाननेको भी विवादापन्न बनाकर उसे ही नही, किन्तु गाथाके प्रतिपाद्य-विषयको भी झमेलेमे डाल दिया है। १) ।। कानजी स्वामीने जिस प्रकार अपने उक्त तर्कवाक्यकी बातको श्रीकुन्दकुन्दाचार्य-द्वारा गाथामे कही गई बतलाया है उसी प्रकार