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युगवीर-निवन्वावली
गोम्मटेश्वरकी मूर्ति, मन्दिर, पहाड और शिलालेख आदि ६ फोटो-चित्र भी साथमे लगे हुए हैं, जिनमेसे अधिकाश चित्र पहले जैनसिद्धान्त-भास्करादिकम निकल चुके हैं । 'नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्तीका चामुंडरायको शास्त्रोपदेश करना' नामका एक चित्र किसी स्त्रीके सौजन्यसे प्राप्त हुआ है, जिसका नाम नही दिया गया । इस चित्रके सम्बन्धमे लिखा है कि वह त्रिलोकसारकी एक अत्यन्त प्राचीन, सुन्दर चित्रमय, हस्तलिखित प्रतिपरसे लिया गया है, परन्तु वह प्रति कहाँपर मौजूद है और किस सन्-सवत्की लिखी हुई है, इन सब बातोको सूचित करनेकी शायद जरूरत नही समझी गई।
चित्रको देखनेसे मालूम होता है कि, वह किसी ग्रथके एक पत्रका फोटो है। उसके ऊपरके भागमे 'श्रीजिनदेवजी' के बाद 'वलगोविन्द सिहामणि' इत्यादि त्रिलोकसारकी पहली गाथा लिखी हुई है और वाई ओरके हाशियेपर उसकी सस्कृत टीका अकित की गई है। नीचेके भागमे एक ओर भगवान् नेमिनाथका मूर्तिसहित सुन्दर मन्दिर बनाया गया है, जिसके दोनो तरफ क्रमश बलभद्र और नारायण वैठे हुए भक्तिसे नम्रचित्त होकर हाथ जोडे भगवान् नेमिनाथका स्तवन कर रहे हैं, और दूसरी ओर श्रीनेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती एक ऊँचे आसन पर बैठे तथा सिद्धान्त-पुस्तक सामने रखे हुए चामुण्ड राजा और इतर सभ्य लोगोको शास्त्रके अर्थका व्याख्यानकर रहे हैं, ऐसा भाव दिखलाया गया है। चित्र अनेक दृष्टियोसे अच्छा बना है और त्रिलोकसारको उक्त गाथाको लेकर ही बनाया गया है।
इन ६ चित्रोसे अलग दो चित्र अगरेजी टीकाके साथ भी लगाए गये हैं, जिनमे एक अलोकाकाशका सूचक और दूसरा पचपरमेष्ठीके ध्यानका व्यजक है । अन्तिम चित्र रंगीन और