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हीरानन्दजी बोहराका नम निवेदन और कुछ गंकाएँ ५१५ महनियोकी देशनाके विरुद्ध आत्माको एकान्तत. अवद्धस्पृष्ट प्रतिपादन करना नहीं तो और क्या है ? आत्मा यदि सदा शुद्ध विज्ञानघन है तो फिर समार-पर्याय कैसे बनेगी ? ससार-पर्यायके अभावमें जीवोंके मसारी तथा मुक्त ये दो भेद नहीं बन सकेंगे, सगागे जीवोके अभावमें मोक्षमार्गका उपदेण किमे ? अतः वह भी न बन सोगा और इस तरह सारे धर्मतीर्थ के लोपका ही प्रगंग उपस्थित होगा। और आत्मा यदि सदा शुद्ध विज्ञानघनके रूप नहीं है तो फिर उनका शुद्ध विनानधन होना किसी समय गा अन्तगमयकी बात ठहरेगा, उसके पूर्व उसे अशुद्ध तवा अज्ञानी मानना होगा, बैगा माननेपर उसको अशुद्धि तथा अज्ञानताको अन्यानो और उनके कारणोको बतलाना होगा। साथ ही, उन पायो-मागोंका भी निर्देश करना होगा जिनमे अशुद्धि आदि दूर होर उमे शुद्ध विनानघनत्व की प्राप्ति हो सकेगी, तभी आत्मद्रव्य
तो यथार्थ में जाना जा सकेगा। आत्माका सच्चा तथा पूरा गोग गने के लिए जिनगाननमें गदि इन नब बातो का वर्णन है नो तिर एमा शुद्ध आमाको 'जिनशानन' नाम देना नहीं जन गोगा और न पाहना तो बन सकेगा कि पूनादान-ताकिम मापो सपा प्रत गमिति गति आदि प नगगनान्तिलो गिमानना कोई काम नहीं- मोतीराय के रूप मर्मत
जगतो नहो। ऐसी हालत में कानजी महाराज पर पदिने वाले यारो परिमाना जो अपना भोवोहगनीमिनियमोनरी होता। शंका और गमापान र मैं वानोको गाओंजो नेवा है, जो मंन्याने
गीत मन पगत रिन्ये प्रमाण पर