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युगवीर-निवन्धावली शीर्षकके साथ कानजीस्वामीका एक प्रवचन दिया हुआ है और उसके अन्तमे लिखा है-"श्री समयसार गाथा १५ पर पूज्य स्वामीजीके प्रवचनसे ।" इस प्रवचनकी कोई तिथि-तारीख साथमे सूचित नही की गई, जिससे यह मालूम होता कि क्या यह प्रवचन वही है जो अपने लोगोके सामने ता० १२ फरवरीको दिया गया था अथवा उसके वाद दिया गया कोई दूसरा ही प्रवचन है। यदि यह प्रवचन वही है जो १२ फरवरीको दिया गया था, जिसकी सर्वाधिक सभावना है, तो कहना होगा कि वह उस प्रवचनका बहुत कुछ सस्कारित रूप है। सस्कारका कार्य स्वय स्वामीजीके द्वारा हुआ है या उनके किसी शिष्य अथवा प्रधान शिष्य श्रीरामजी मानिकचन्दजी दोशी वकीलके द्वारा, जोकि आत्मधर्मके सम्पादक भी है, परन्तु वह कार्य चाहे किसीके भी द्वारा सम्पन्न क्यो न हुआ हो, इतना तो सुनिश्चित है कि यह लेखबद्ध हुआ प्रवचन स्वामीजीको दिखलासुनाकर और उनकी अनुमति प्राप्त करके ही छापा गया है और इसलिए इसकी सारी जिम्मेदारी उन्हीके ऊपर है। अस्तु ।
इस लेखबद्ध सस्कारित प्रवचनसे भी मेरी शकाओका कोई समाधान नही होता। आठमेसे सात शकाओको तो इसमे प्रायः छुआ तक भी नही गया है, सिर्फ दूसरी शकाका ऊपरा-ऊपरी दर्शन देना वन्द है, जवकि अपना 'अनेकान्त' पत्र कई वर्षोंसे वरावर कानजीस्वामीकी सेवामें भेंटस्वरूप जा रहा है। और इसलिए यह अक अपने पास सोनगढके आत्मधर्म-आफिससे भेजा नहीं गया है-जवकि १५ वी गाथाका विषय होनेसे भेजा जाना चाहिए था बल्कि दिल्ली में एक सज्जनके यहाँसे इत्तफाकिया देखनेको मिल गया है । यदि यह अक न मिलता तो इस लेखके लिखे जानेका अवसर ही प्राप्त न होता। इस अकका मिलना ही प्रस्तुत लेखके लिखनेमें प्रधान निमित्त कारण है।