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कानजी स्वामी और जिनशासन
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द्वारा प्राप्त हुआ था जिसपर स्थानके साथ पत्र लिखनेकी तारीख तो है, परन्तु बाहर भीतर कही भी पत्र भेजनेवाले सज्जनका कोई नाम उपलब्ध नही होता । सभवत वे सज्जन बावू नानकचन्दजी एडवोकेट जान पडते हैं, जो कि समयसारके स्वाध्यायके प्रेमी हैं और उस प्रेमी होनेके नाते ही पत्रमे कुछ लिखनेके प्रयासका उल्लेख भी किया गया है । इस पत्र में आठवी शका विषयमे जो कुछ लिखा है उसे उपयोगी समझकर यहाँ उद्धृत किया जाता है
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गाथा न ० १५ के पहले चरणमें जो क्रम -भग है वह बहुत ही रहस्यमय है । यदि गाथा न०१५ मे गाथा न० १४ का पूर्वार्ध दे दिया जाता तो दो विशेषण 'अविशेष' और 'असंयुक्त' छूट जाते । ये विशेषण किसी दूसरे विशेषणके उपलक्षण नही हो सकते । क्रमभग करने पर दो विशेषण 'नियत' और 'असयुक्त' छूटे हैं सो इनमें से 'नियत' विशेषण तो 'अनन्य' का उपलक्षण है । जो वस्तु अनन्य होती है वह 'नियत' अवश्य होती हैं, इस कारण अनन्य कह देनेसे नियतपना आ ही गया । इसी तरह 'अविशेष' कहनेसे असयुक्तपना आ ही गया । सयोग विशेषोमे ही । हो सकता है सामान्यमें नही - सामान्य तो दो द्रव्योका सदा ही जुदा जुदा रहता है । सयुक्तप्ना किसी द्रव्यके एक विशेषका दूसरे द्रव्यके विशेषसे एकत्व हो जाना है । श्रीकुन्दकुन्दने क्रमभग करके अपनी (निर्माण) कलाका प्रदर्शन किया है और गाथा न० १५ मे भी शुद्धनयके पूर्णस्वरूपको सुरक्षित रक्खा है । अविशेष और असयुक्तका इस प्रकारका सम्बन्ध अन्य तीन विशेषणोसे नही है जिस प्रकारका नियतका अनन्यसे असयुक्तका अविशेपसे है ।' (सामान्य)