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युगवीर-निवन्धावली धर्मको ठीक तौरसे समझा नही ओर इसीलिये वे उसके खडनमे प्रवृत्त हुए हैं !! जान पड़ता है ब्रह्मचारीजी कुछ दिनसे बौद्ध-- साहित्यका अध्ययन करते हुए और बौद्धधर्मके मूल सिद्धान्तोपर ठीक दृष्टि न रखते हुए ग्रन्थोके ऊपरी शब्दजालमे पडकर बौद्धधर्मकी मोहमायामे फँस गये हैं। इस मोहमायामय शब्दजालको स्वामी समन्तभद्र जैसे आचार्योन परखा था और उसीकी सूचना वे 'बहुगुणसम्पदसकलं परमतमपि मधुरवचनदिन्यासकलं' जैसे वाक्यो द्वारा अपने ग्रन्थोमे कर गये हैं। 'स्वयंभूस्तोत्र'की टीका लिखकर भी ब्रह्मचारीजीने स्वामीजीके इस सकेतको नही समझा, यह आश्चर्य तथा खेदकी बात है। इसीसे आपकी स्थिति आजकल दो परस्पर विरोधी घोडोकी पीठपर एक साथ सवारी करनेवाले सवार-जैसी हो रही है।
आशा है, इस लेखसै, ब्रह्मचारीजी अपनी भूलको सुधारेगे और अपनी पोजीशनको शीघ्र ही स्पष्ट करके बतलानेकी कृपा करेगे।
---जैनजगत, १६-७-१६३४