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युगवीर - निवन्धावली
विभूषित करके सबके लिये उसे खुला रक्खा गया है । साथमे 'विद्याधरपुरस्सरा' विशेषण लगाकर यह भी स्पष्ट कर दिया कि उस कोठेमे विद्याधर ओर भूमिगोचरी दोनो प्रकारके मनुष्य एक साथ बैठते हैं । विद्याधरका 'अनेक' विशेषण उनके अनेक प्रकारोका द्योतक है, उनमे मातङ्ग ( चण्डाल ) जातियोके भी विद्याधर होते हैं और इसलिये उन सबका भी उसके द्वारा समावेश समझना चाहिए ।
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( ख ) ५८वें सर्गके तीसरे पद्यमे भगवान नेमिनाथकी वाणीको 'चतुर्वर्णाश्रमाश्रया विशेषण दिया गया है, जिसका यह स्पष्ट आशय है कि समवसरणमे भगवानकी जो वाणी प्रवर्तित हुई वह चारो वर्णों और चारो आश्रमोका आश्रय लिये हुए थी — अर्थात् चारो वर्णों ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र और चारो आश्रमो ब्रह्मचारी, गृहस्थ, वानप्रस्थ, सन्यस्तको लक्ष्यमे रखकर प्रवर्तित हुई थी । और इसलिये वह समवसरणमे चारो वर्णों तथा चारो आश्रम के प्राणियोकी उपस्थितिको ओर उनके उसे सुनने तथा ग्रहण करनेके अधिकारको सूचित करती है ।
ऐसी हालत मे प० दौलतरामजीने अपनी भाषा वचनिकामे 'स्त्रीपुरुषाः ' पदका अर्थ जो 'चारो वर्णके स्त्रीपुरुष' सुझाया है वह न तो असत्य है और न मूलग्रन्थके विरुद्ध है । तदनुसार जिनपूजाधिकारमीमासाकी उक्त पक्तियोमे मैंने जो कुछ लिखा है वह भी न असत्य है और न ग्रन्थकारके आशयके विरुद्ध है । और इसलिये अध्यापकजीने कोरे शब्दच्छलका आश्रय लेकर जो कुछ कहा है वह बुद्धि और विवेकसे काम न लेकर ही कहा जा सकता है । शायद अध्यापकजी शूद्रोमे स्त्री-पुरुषोका होना ही न मानते