________________
गलती और गलतफ़हमी
'अनेकान्त'के विशेपान ( वर्ष ६, किरण ५-६ ) मे कुछ ऐसी गलतियां हुई है, जो सुनने-समझने अथवा लिसनेकी गलतीसे सम्बन्ध रखती है। उदाहरणके तौरपर 'पृष्ठ २२२ पर वडे अच्छे हैं पडितजी' इस शीर्पकके नीचे एक वालिका-द्वारा भोजन-समयकी जिस घटनाका उल्लेख किया गया है वह कुछ अधूरा और सुनाये हुए श्लोकादि-विपयक अर्थकी कुछ गलती अथवा गलतफहमीको लिये हुए है। भोली वालिका गारदाको तो दो एक चलतीसी वातें कहकर अपनी श्रद्धाञ्जलि अर्पण करनी थी, उसे क्या मालूम कि जिस वातको उसने बूढी अम्मासे सुना था उसका प्रतिवाद कितना महत्त्व रखता है और इसलिये उसे कितनी सावधानीसे ग्रहण तथा प्रकट करना चाहिये । लिखते समय उसके सामने न तो वह श्लोक था और न उसका मेरे द्वारा किया हुआ अर्थ, दोनोकी उडतीसी स्मृति जान पड़ती है, जिसे लेखमे अकित किया गया है और उससे सहारनपुरके जैन-समाजमे एक प्रकारकी
आलू-चर्चा चल पडी है । अत यहाँपर इस विषयमे कुछ स्पष्टीकरण कर । देना उचित जान पडता है, जिससे गलतफहमी दूर हो सके । कुमारी शारदाने जिस श्लोकको सुनानेकी बात कही है वह गोम्मटसारादि ग्रन्थोकी टीकाओमे पायी जानेवाली निम्न प्राचीन गाथा है :
सुकं पकं तत्तं अंविल-लवणेण मिस्सियं दव्वं । जं जंतेण च्छिण्णं तं सव्वं फासुयं भणियं ॥