________________
३६६
युगवीर-निवन्धावली
जिन्हे लक्ष्य करके यह भेद किया गया हो । जो म्लेच्छ किसी चक्रवर्ती समयमे आकर बसे भी होगे उनका अस्तित्व उस समय हो ही नही सकता और उनकी सतान शास्त्रीजी के कथनानुसार म्लेच्छ रहती नही - वह पहले ही आर्यजातिमे परिणत हो गई थी। इसके सिवाय, राक और यवनादिक जिन देशोंके निवासी हैं वे आर्यखण्डके ही प्रदेश हैं । श्री आदिनाथ भगवान्के समयमे और उनकी आज्ञासे आर्यखण्ड मे जिन मुख्य तथा अन्तराल देशोकी स्थापना की गई थी उनमे शक-यवनादिकके देश भी है । जैसा कि श्रीजिनसेनाचार्यविरचित आदिपुराणके निम्न वाक्योसे प्रकट हे
--
दर्वाभिसार सौवीर शूरसेनापरान्तकाः । विदेह - सिन्धु-गान्धार-यवनाश्चेदि - पल्लवा. ॥ १५५ ॥ काम्भोजऽरट्ट वाल्हीक- तुरुष्क-शक- केकयाः । निवेशितास्तथाऽन्येपि विभक्ता विषयास्तथा ॥ १५६ ॥
तदन्तेष्वन्तपालानां दुर्गाणि परितोऽभवन् । स्थानानि लोकपालानामिव स्वर्धामसीमसु ॥ १६०॥ तदन्तरालदेशाश्च चभुवुरनुरक्षिताः । लुब्धकाऽरण्यचरट पुलिन्द शवरादिभिः ॥ १६९ ॥
- आदिपुराण, पर्व १६
-
यही वजह है कि जिस समय भरत चक्रवर्ती दिग्विजय के लिये निकले थे तब उन्हे गंगाद्वारपर पहुँचनेसे पहले ही आर्यखण्डमे अनेक म्लेच्छ राजा तथा पुलिन्द लोग मिले थे --- पुलिन्द म्लेच्छोकी कन्याएँ चक्रवर्तीकी सेनाको देखकर विस्मित हुई थी और उन्होने अनेक प्रकारकी भेटे देकर भरत चक्रवर्तीके दर्शन किये थे । उस वक्ततक म्लेच्छखण्डोके कोई म्लेच्छ आर्यखण्डमे आये भी नही