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एक विलक्षण आरोप
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वह आज खतम हो गई है । वास्तवमे इस पुस्तकको लिख कर बाबू जुगलकिशोरजीने जैनधर्मका बहुत ही उपकार किया है । चाबू साहब मौसफकी तारीफ करनी जरूरी नही है । हर सतरसे तहरीरकी खूबी, बुद्धिमत्ता, आलादर्जेकी कुशलता, लेखकके भावो की उदारताका परिचय मिलता है । हिम्मत और शान लेखक महाशय की सराहनीय है । मेरे हृदयमे जितनी शकाएँ पैदा हो गईं थी वे सब इस पुस्तकके पाठ करनेसे समाधान हो गई हैं । इसीका नाम पाडित्य है । वास्तवमे जैनधर्मके आलमगीरपन ( सर्वव्यापी क्षेत्र ) को जिस चीजने सकीर्ण बना रक्खा है वह कुछ गत नवीन समयके हिन्दू रिवाजोकी गुलामी ही है । कुछ सकुचित खयालके व्यक्तियोने जैनिज्म ( Jainism ) को एक प्रकारका जातिज्म ( Jatism ) बना रक्खा है । ये लोग हमेशा दूसरोपर जो इनसे मतभेद रखते हैं, धर्मविरुद्ध हुल्लड मचा कर आक्षेप किया करते हैं। मुझे खुशी है कि बाबू जुगलकिशोरजीने मुँहतोड जवाब लिखकर दर्शा दिया है कि वाकई धर्मविरुद्ध विचार किनके हैं ।"
३ " 'जैनहितैषी' के बारेमे मेरी राय यह है कि हिन्दुस्तान भरमे शायद ही कोई दूसरा पर्चा ( पत्र ) इस कदर उम्दगी ( उत्तमता ) और काबलियत ( योग्यता ) का निकालता हो । मेरे खयालमे तो योरोपके फर्स्ट क्लास जर्नल्स (Gournals) के मुकाबलेका यह पर्चा रहा है ।"
इनसे प्रकट है कि आपने सम्पादककी इन कृतियोको वास्तवमे कितना अधिक काबिल तारीफ पाया है । और 'मेरी भावना' को तो आपने इतना अधिक काबिल तारीफ़ पाया और प्रसद किया है कि उसे अपनी तीन पुस्तकोमे लगाया, अग्रेजीमें